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केवलज्ञान की उपलब्धि के पश्चात् भगवान् महावीर ने तीर्थ-प्रवर्तन कब किया, इस विषय में दिगम्बर परम्परा के विभिन्न ग्रन्थकारों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख किये हैं । तिलोय पण्णत्तीकार ने भगवान् महावीर को वैशाख शुक्ला १० के अपराह्न में ऋजुकूला नदी के तट पर केवलज्ञान की प्राप्ति होने तथा उससे ६६ दिवस पश्चात् श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन उनके द्वारा पंचशैल ( राजगृह) नगर के विपुलाचल पर्वत पर धर्मतीर्थ की स्थापना का उल्लेख किया है ।
धवलाकार ने भी केवलज्ञान एवं तीर्थ प्रवर्तन की उपरिलिखित तिथियां बताते हुए लिखा है :
"छउमत्थत्तणेण गमिय वइसाहजोगापक्खदसमीए उजुकूललदी तोरे जिभिगामस्सबाहि छट्टोववासेण सिलावट्टे प्रादावतरण अवरव्हे पादछायाए केवलरणामुप्पाइदं ।
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एत्युवज्जतीम्रो गाहाम्रो -
गमइय छदुमत्थत्त, वारसवासारिण पंच मासे य । पण्णरसारिणदिरणारिणय, तिरयणमुद्धो महावीरो ।। ३२ ।।
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उजूकूलरणदीतीरे, जंभियगामे बहि सिलावट्टे । गादावेंतो, प्रवरण्हे पायछायाए ||३३॥ asसाहजोomपक्खे, दसमीए खवगसेडियारूढो । हंतूरण घाइकम्मं, केवलरणार समावो ||३४|| धवलाकार ने तीर्थप्रवर्तन के स्थल (क्षेत्र) का उल्लेख करते हुए लिखा है :( १ ) " तत्थ खेत्तविसिट्टोत्थकत्ता परूविज्जदि - पंचसेल. पुरे रम्मे, विउले पव्वदुत्तमे । खारणादुमसमाइणे, देवदारणववंदिदे ॥ ५२ ॥ महावीरेणत्थो कहिश्रो, भविलोगस्स । "
(२) ...... पंचसेल उरणेरइ दिसाविसयश्रइ - विउलविउलगिरिमत्थयत्थए "गंध उडि- पसायम्मि ट्ठियसीहासरणारूढेण वड्ढमारणभडारएतित्थमुपाइदं ।
" बहसाहसुद्धदसमी माधारिक्खम्मि वीरगाहस्स ।
रिजुकूलणदीतीरे प्रवर हे केवलं गाणं ॥ ७०१ ।। [तिलोयपण्णत्ती, ४ महाधिकार ]
बासस्स पढ़ममासे, सावरणरणामम्मि बहुल पडिवाए । अभिजीणक्खत्तम्मि य, उत्पत्ती धम्मतित्थस्स ||६||
[ वही, १ महाधिकार ]
3 सुरक्षेयरमणहरणे, गुरणरणामे पंचसेलणयरम्मि । बिउलम्मिपब्वदवरे, वीर जिणो अटुकत्तारो ।। ६५ ।। पट्खण्डागम-धवला - भाग ६ पृष्ठ १२४
[ वही ]
५ पट्खण्डागम, घवलासहित, भाग १, पृष्ठ ६२
बही भाग ६ पृष्ठ ११३
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