________________ षष्ठः सर्गः अन्वयः-यत्र स नारी...मुखात् 'दमयन्ति' तम् नलम् एतम् पश्य, आतिम् त्यज' इति आलि-कुल-प्रबोधान् श्रुत्वा स्वम् दृष्टम् आशङ्कत / ____टीका-यत्र सभायाम् स नलः नार्याः कस्या अपि सुन्दर्याः करे हस्ते (10 तत्पु० ) वर्तते तिष्ठतीति तथोक्ता (उपपद तत्पु०) या सारी सारिका (कर्मधा०) तस्याः मुखात् वक्त्रात्-हे दमयन्ति ! तम् हृदयानुभूतम् नलम् एतम् पुरःस्थितम् अथवा आगतम् पश्य विलोकय, आतिम् विरह-जनितां पीडाम् त्यज मुञ्च' इति एवं प्रकारेण आलीनां सखीनाम् कुलस्य समाजस्य प्रबोधान् प्रबोधकवचनानि आश्वासनानीति यावत् श्रुत्वा आकर्ण्य स्वम् आत्मानम् दृष्टम् सखीभिः विलोकि. तम् आशङ्कत-आशङ्कितवान् / सखीजनः दमयन्ती-कृते आश्वासने दत्त स्म, तच्च श्रुत्वा सारिकापि तथा रटतिस्म / नलस्तु तदाकर्ण्य ‘एताभिरहं दृष्टोऽस्मीति शङ्कां चकारेति भावः / / 60 / / व्याकरण-एतम आ + इ + क्त (कर्तरि ), आतिम् आच्छंतीति आ + Wऋ+ क्तिन् / प्रबोधान् प्रबोध्यतेऽनेनेति प्र+बुध् + घञ् ( करणे)। अनुवाद-जहाँ वे ( नल ) ( किसी ) सुन्दरी के हाथ में स्थित मैना के मुँह से-हे दमयन्ती ! वे नल आ गये हैं, देखो, मनोव्यथा छोड़ो" यों सखीजन के सान्त्वना-वचनों को सुनकर शंका कर बैठे कि इन्होंने मुझे देख लिया है क्या ? // 60 // टिप्पणी-राजा को शंका हो गई कि सखियों ने मुझे देख लिया है, नहीं तो वे मैना को ऐसा कहना क्यों सिखाती? शंका एक संचारी भाव है, जिसके उदय होने से यहाँ भावोदयालंकार स्पष्ट ही है। किन्तु मल्लिनाथ कहते हैं कि मैना की कही वात सुनकर राजा को उस पर नारी की कही बात का भ्रम हो उठा है, अर्थात् यह नारी ने कहा है, इसलिए यहाँ' वस्तु से भ्रान्तिमान अलंकार की ध्वनि है / 'नारी' 'सारी' में पदान्त-गत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। यत्रैकयालीकनलीकृतालीकण्ठे मृषाभीमभवीभवन्त्या / तदृक्पथे दौहदिकोपनीता शालीनमाधाय मधूकमाला // 61 // अन्वय-यत्र मृषा...वन्त्या एकया अलीक....कण्ठे दौहदिकोपनीता मधूकमाला तदृक्पथे शालीनम् अधायि / टीका-यत्र सभायाम् मृषा भीमभवा ( सुप्सुपेति समासः ) भीमात् भव: जन्म ( पं० तत्पु० ) यस्याः तथाभूता ( ब० वी० ) भीमभवा = भैमी दमयन्ती