________________ 241 नैषधीयचरिने अनुवाद–ब्रह्मा ने हर्ष के साथ प्रिया के ( चरणों के ) नख बने हुए चन्द्रमा की दश संख्या में जो यह अच्छी अवस्था बनाई, वह उचित ही है, अन्यथा ( चन्द्रमा का ) इस ( दमयन्ती ) के चरणों के व्याज से लाल कमलों के सौन्दर्य का आस्वाद लेने का भाग्य कैसे होता ? // 106 // टिप्पणी-इस श्लोक में कवि दमयन्ती के पैरों के नखों का वर्णन करता है / हम पीछे सर्ग 6, श्लो० 25 में बता आये हैं कि 'अर्घचन्द्र' आधे चाँद गलहत्थी और नखाङ्क को कहते हैं। नखाङ्क इसके लिए अर्धचन्द्र कहलाता है कि वह आधे चाँद के आकार का होता है, अतः दमयन्ती के पाँवों के दस नख दस अर्घचन्द्र हो गये जो पैरों के रूप में विकसित रक्तकमलों का सौन्दर्य खूब निहार रहे हैं एवं उनकी सेवा कर रहे हैं, नहीं तो चन्द्रमा का भला यह सौभाग्य कहाँ, जो वह कमलों को देख तक भी सके, क्योंकि वे रात को बन्द हुए पड़े रहते हैं भाव यह कि चरणों के नख चन्द्र-सदृश हैं / विद्याधर यहाँ अनुमान कह रहे हैं। 'पद-छद्म' में अपहनुति है। 'साधुदशत्व' शब्द में श्लेष है। 'भाग्य' भाग्यं' में छेक, ‘च्छद्म' 'पद्म' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। यशः पदाङ गुष्ठनखौ मुखं च बिभर्ति पूर्णेन्दुचतुष्टयं या। कलाचतुःषष्टिरुपैतु वासं तस्यां कथं सुभ्रुवि नाम नास्याम् // 107 // अन्वयः-या यशः, पदाङ्गुष्ठनखो, मुखम् च पूर्णेन्दुचतुष्टयम् बिभर्ति, तस्याम् अस्याम् सुभ्रवि कलाचतुःषष्टिः वासम् कथम् नाम न उपैतु / टीका-या दमयन्ती यशः कीर्तिम् पदयोः चरणयोः अङ गुष्ठयोः नखौ नखरौ ( उभयत्र 10 तत्पु० ) मुखं वदनं च पूर्णः षोडशकलायुक्तः यः इन्दुः चन्द्रः ( कर्मधा० ) तस्य चतुष्टयम् चतुष्कम् (10 तत्पु० ) बिति धारयति तस्याम् अस्याम् सु = शोभने भ्रवी यस्याः तथाभूतायाम् ( ब० वी० ) सुन्दर्या दमयन्ल्याम् कलानाम् षोडशानाम् अथ च गीतवाद्यादिविद्यानाम् चतुःषष्टिः चतुरधिका षष्ठिः वासम् स्थितिम् कथम् नामेति कोमलामंत्रणे न उपैतु प्राप्नोतु ? दमयन्त्याम् यशः पादाङ्गुष्ठनखद्वयम् मुखञ्चेति चत्वारश्चन्द्रास्तिष्ठन्ति, प्रत्येकचन्द्रस्य षोडशकलाः भवन्तीति ताः सर्वाः कलाः चतुभिः गुणिताः चतुःषष्टिः कलाः षोडशभागा एव चतुःषष्टिः कलाः गीतवाद्याद्याः सन्ति, गीतवाद्यादिनिपुणेयमिति भावः // 107 //