________________ 360 नैषधायचरिते टिप्पणी-अमृत और यज्ञभागदान के अतिरिक्त हमारे पास देने योग्य तीसरी वस्तु अमरत्व है, लेकिन उसे देने को भी कैसे कहें, जब कि काम के मारे हुए हम निज रक्षा हेतु तुम्हारे चरणों की शरण मांग रहे हैं, यह बड़ी लज्जा की बात होगी। संस्कृत का आभाणक है-'स्वयमसिद्धः कथं परान् साधयेत् ?' अतः हम सर्वथा तुम्हारी दया के पात्र हैं। हमें बचाओ।। विद्याधर ने 'अत्र काव्यलिङ्गातिशयोक्त्यलङ्कारो' कहा है। पादपद्म में रूपक है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। नास्माकमस्मान्मदनापमृत्योस्त्राणाय पीयूषरसायनानि / प्रसीद तस्मादधिकं निजं तु प्रयच्छ पातुं रदनच्छदं नः // 104 // अन्वयः-( हे दमयन्ति ! ) पीयूष-रसायनानि अस्मान् मदनापमृत्योः अस्माकम् त्राणाय न ( भवन्ति), तस्मात् प्रसीद / अधिकम् निजम् रदनच्छदम् तु पातुम् नः प्रयच्छ / ___टीका-(हे दमयन्ति ! ) पीयूषम् अमृतम् एव रसायनानि आयुर्बलवर्धकानि औषधानि अस्मात् मदनेन कामेन अपमृत्योः कामतापकृतात् अकालमृत्यो रित्यर्थः ( तृ० तत्पु० ) अस्माकम् त्राणाय रक्षायै न कल्पन्ते इति शेषः तस्मात् कारणात् त्वम् प्रसीद अस्मासु प्रसन्ना भब। अधिकम् अमृतरसायनेभ्यः उत्कृष्टम् निजम् स्वीयम् रदनच्छदम् ओष्ठम् अधरमित्यर्थः तु पातुम् पानविषयीकतुम् नः अस्मभ्यम् प्रयच्छ देहि / अमृतपानेनास्माकम् कामकृताकालमृत्युः नापेष्यति स तु अमृतापेक्षयाऽधिकप्रभावशालिना त्वदधररसायनपानेनैवापेष्यतीति भावः // 104 // व्याकरण-रसायनम् रसस्य (पारदस्य ) अयनम् ( स्थानम् ) आयुर्वेद में वार्धक्य तथा अकालमृत्यु रोधक और आयुर्वर्धक औषध को रसायन कहते हैं / उसमें रस- पारा मिला रहता है / जब अपमृत्यु में साधारण औषधि काम नहीं करती है, तब रसायन दिया जाता है। अपमृत्युः अपकृष्टो मृत्युः इति ( प्रा० स० ) / त्राणम् / + क्त ( भावे ) त को न, न को ण / रदनच्छर: छदतीति Vछद् + अच् ( कर्तरि ) रदनानांच्छदः (10 तत्पु०)। अनुवाद-"( दमयन्ती ! ) अमृत-रूपी रसायन काम-कृत इस अकाल मृत्यु से हमारी रक्षा नहीं करते, इसलिए कृपा करो; उनसे अधिक (प्रभावशाली ) अपना अघर-पान तो हमें दो"॥ 104 //