Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 506
________________ नवमः सर्गः 503 अनुवाद--तुम मेरे साथ बातें करने की कृपा करो; चुम्बनों द्वारा ( मुझ पर ) दया दिखाओ; मेरे द्वारा ( अपने ) कुचों की सेवा करवाने के लिए प्रसन्न हो जाओ, क्योंकि मेरी एकमात्र तुम ही प्राण हो जैसे चन्द्रकिरण समूह की रात (प्राण ) होती है। // 120 // टिप्पणी-'निशेव' में उपमा और 'नलस्य' जीवितम् में कार्यकारण का अभेद बताने से हेतु अलंकार है / 'कम्पस्व' 'दयस्व' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / करोत्करस्य-निशा को चन्द्र का प्राण न बताकर किरणों का प्राण बताने का प्रयोजन यह है कि चन्द्र तो दिन में भी रहता ही है, किन्तु ये तो किरणें ही हैं, जो रात में ही रहती हैं, दिन में नहीं // 120 // मनिर्यथात्मानमथ प्रबोधवान् प्रकाशयन्तं स्वमसावबध्यत / आप प्रपन्नां प्रकृति विलोक्य तामवाप्तसंस्कारतयासृजगिरः॥१२१॥ अन्वयः--अथ प्रबोधवान् असौ प्रकाशयन्तम् स्वम् आत्मानम् अबुध्यत; अपि च प्रकृतिम् प्रपन्नाम् ताम् विलोक्य अवाप्त-संस्कारतया गिरः असृजत् यथा मुनिः (प्रबोधवान् सन् स्वम् प्रकाशयन्तम् आत्मानम् अवबुध्यते, अपि च अवाप्त. संस्कारतया ताम् प्रकृतिम् प्रपन्नाम् विलोक्य गिरः सृजति)। टीका-अथ मोहे पूर्वोक्त प्रकारेण प्रलपनानन्तरम् प्रबोधवान् समुपजाततत्त्वज्ञानः, गतमोह इति यावत् असो नलः प्रकाशयन्तम् 'अहं नलोऽस्मीति नलत्वेन प्रकटयन्तम् स्वम् आत्मानम् अबुध्यत ज्ञातवान्, मोहापगमनान्तरम् नलेन तत्त्वतो ज्ञातम् देवदूतेन सताऽपि मया अस्या अग्रे मोहे आत्मनो नलत्वं प्रकटितमित्यर्थः, अपि तथा च प्रकृतिम् रोदनादिकं त्यक्त्वा पूर्वावस्थाम् प्रपन्नाम् प्राप्ताम्, प्रकृतिस्थाम् स्वस्थामिति यावत् ताम् दमयन्तीं विलोक्य दृष्ट्वा अवाप्तः प्राप्तः संस्कारः (कर्मधा० ) दूतत्व-भावना येन तथाभूतस्य (ब० वी० ) भावः तत्ता तया अहं तु दूतोऽस्मीति पूर्वसंस्कारोप-जनितस्मृतिकारणादित्यर्थः गिरः वक्ष्यमाणानि दूत्योचितानि वाक्यानि असृजत् अकथयदित्यर्थः यथा मुनिः कश्चिद् योगी प्रबोघः शम-दमादिवतः श्रवण-मनन-निदिध्यासनैश्च जातं तत्त्वज्ञानम् अस्यास्तीति तद्वान् सन् स्वम् प्रकाशयन्तम् स्वप्रकाशरूपम् आत्मानम् 'अहम् ब्रह्मास्मीति' अवबुध्यते जानाति अपि च तथा बुद्ध्वा अवाप्तः प्राप्तः संस्कार संसारावस्थास्थपूर्वजन्मीयसंस्कारः तद्वत्त्वेन जन्म-जन्मान्तरीयसंस्कारोबोधेनेति यावत् ताम् प्रसिद्धाम्

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