________________ 5.2 नैषधीयचरिते सूचक अष्टवर्ग तुम्हारे जिस अधर पर ( ब्रह्मा द्वारा) रेखाओं से लिखा गया है, बिम्ब-जैसा लाल-लाल तुम्हारा वह अधर मेरे दन्त-क्षतों की पंक्ति द्वारा रंगा जाता हुआ भूर्जपत्र का रूप अपनाले // 119 // . टिप्पणी-कहने का भाव यह है कि निसर्गतः तुम्हारे अधर पर पड़ी जो आठ रेखायें हैं, वै तुम्हारे काम के जन्म पर जन्मपत्री पर का अष्टवर्ग-जैसा है। अष्टवर्ग ज्योतिष में बड़ा शुभ माना जाता है। इसमें गिनती की आठ रेखायें होती हैं, जो भूर्जपत्र पर लिखी जन्मपत्री में लिखी जाती हैं। पुराने समय में जन्मपत्रियां आदि भूर्जपत्र पर ही लिखी जाती थीं। तब तक कागज का आविकार नहीं हुआ था। इस तरह तुम्हारा अधर भूर्जपत्र-जैसा हो जाय जिसपर पड़े मेरे दन्त-क्षतों के निशान अष्टवर्ग का काम दे दें।" क्योंकि हमने मूलपाठ नारायण का अपनाया है, इस लिए हम भी इस श्लोक को मूल में रख रहे हैं, लेकिन चाण्डू पण्डित, विद्याधर, ईशानदेव, एवं जिनराज ने इसे छोड़ रखा है / मल्लिनाथ ने भी इसे नहीं लिखा है। हाँ, नरहरि ने रखा है। यहां रेखाओं पर अष्टवर्गत्वारोप और अधर पर भूर्जपत्रत्वारोप में रूपक, बिम्बपाटल में उपमा, 'लिख्य' 'लेख', 'जता' 'जतु' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 119 // गिरानुका पस्व दयस्व चुम्बनः प्रसीद शुश्रूषयितुं मया कुचौ / निशेव चान्द्रस्य करोत्करस्य यन्मम त्वमेकासि नलस्य जीवितम् // 120 // ___ अन्वय:-( त्वम् ) गिरा अनुकम्पस्व, चुम्बनैः दयस्व, मया कुची शुश्रूषयितुम् प्रसीद, यत् चान्द्रस्य करोत्करस्य निशा इव नलस्य मम त्वम् एका जीवितम् असि / टीका-त्वम् गिरा वाण्या माम् अनुकम्पस्व अनुगृहाण, मया सह संभाषणस्य कृपां कुवित्यर्थः, चुम्बनः चुम्बित: दयस्व अनुगृहाण. मया कुचौ स्तनी शुभ्रषयितुम् सेवयितुम् प्रसीद प्रसन्ना भव यत् यतः चान्द्रस्य चन्द्रसम्बन्धिनः कराणाम् किरणानाम् उत्करस्य समूहस्य ( 10 तत्पु० ) निशा रात्रिः इव नलस्य मम मे त्वम् एका केवला जीवितम् प्राणाः असि वर्तसे, चन्द्रकिरणसमूहस्य कृते निशेव मत्कृते केवलं त्वमेव प्राणायिताऽसीति भावः // 120 // व्याकरण-शुश्रूषयितुम् श्रु+ सन् + णिच् + तुमुन् / चान्द्रस्य चन्द्रस्यायः मिति चन्द्र + अण् / जीवितम्/जीव + क्त ( भावे ) /