Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass
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________________ परिशिष्टम् -3 न तास्तं शक्नुवन्ति स्म व्याहतुमपि किञ्चन / तेजसा धर्षितास्तस्य लज्जावत्यो वराङ्गनाः / / 81 // अथैनं स्मयमानं तु स्मितपूर्वाभिभाषिणी / दमयन्ती नलं वीरमभ्यभाषत विस्मिता / / 8 / / "कस्त्वं सर्वानवद्याङ्ग मम हृच्छयवर्धन / प्राप्तोऽस्यमरवद् वीर ज्ञातुमिच्छामि तेऽनघ // 83 // कथमागमनं चेह कथं चासि न लक्षितः / सुरक्षितं हि मे वेश्म राजा चैवोग्रशासनः" // 84 // एवमुक्तस्तु वैदा नलस्तां प्रत्युवाच ह। नल उवाच "नलं मां विद्धि कल्याणि देवदूतमिहागतम् // 85 // देवास्त्वां प्राप्तुमिच्छन्ति शक्रोऽग्निवरुणो यमः / तेषामन्यतमं देवं पति वरय शोभने // 86 // तेषामेव प्रभावेण प्रविष्टोऽहमलक्षितः / प्रविशन्तं न मां कश्चिदपश्यन्नाप्यवारयत् // 87 // एतदर्थमहं भद्रे प्रेषितः सुरसत्तमः। एतच्छ्रुत्वा शुभे बुद्धि प्रकुरुष्व यथेच्छसि" // 88 // सा नमस्कृत्य देवेभ्यः प्रहस्य मलमब्रवीत् / "प्रणयस्व यथाश्रद्ध राजन् किं करवाणि ते // 89 // अहं चैव हि यच्चान्यन्ममास्ति वसु किञ्चन / तत् सर्व तव विश्रब्धं कुरु प्रणयमीश्वर // 10 // हंसानां वचनं यत्तु तन्मां दहति पार्थिव / त्वत्कृते हि मया वीर राजानः संनिपातिताः // 91 // यदि त्वं भजमानां मां प्रत्याख्यास्यसि मानद / विषमग्नि जलं रज्जुमास्थास्ये तव कारणात्" // 13 // एवमुक्तस्तु वैदा नलस्तां प्रत्युवाच ह। "तिष्ठत्सु लोकपालेषु कथं मानुषमिच्छसि // 13 //

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