Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass
View full book text
________________ नैषधीयचरिते दमयन्तीं तु कौरव्य वीरसेनसुतो नृपः / आश्वासयद् वरारोहां प्रहृष्टेनान्तरात्मना / / 149 // "यत् त्वं भजसि कल्याणि पुमांसं देवसंनिधौ। तस्मान्मां विद्धि भर्तारमेवं ते वचने रतम् // 150 // यावच्च मे धरिष्यन्ति प्राणा देहे शुचिस्मिते / तावत् त्वयि भविष्यामि सत्यमेतद् ब्रवीमि ते" // 151 // दमयन्ती तथा वाग्भिरभिनन्द्य कृताञ्जलिः / तो परस्परतः प्रीतों दृष्ट्वा चाग्निपुरोगमान् // 152 // तानेव शरणं देवाञ्जग्मतुर्मनसा तदा। वृते तु नैषधे भैम्या लोकपाला महौजसः // 153 // प्रहृष्टमनसः सर्वे नलायाष्टी वरान् ददुः। प्रत्यक्षदर्शनं यज्ञे गति चानुत्तमां शुभाम् // 154 // नैषघाय ददौ शक्रः प्रीयमाणः शचीपतिः / अग्निरात्मभवं प्रादाद् यत्र वाञ्छति नैषधः // 155 / / लोकानात्मसमांश्चैव ददौ तस्मै हुताशनः / यमस्त्वन्नरसं प्रादाद् धर्म च परमां स्थितिम् // 156 // अपां पतिरपां भावं यत्र वाञ्छति नैषधः / सजश्चोत्तमगन्धाढ्याः सर्वे च मिथुनं ददुः // 157 // वरानेवं प्रदायास्य देवास्ते त्रिदिवं गताः / पार्थिवाश्चानुभयास्य विवाहं विस्मयान्विताः // 158 // दमयन्त्याश्च मुदिताः प्रतिजम्मुर्यथागतम् / गतेषु पार्थिवेन्द्रषु भीमः प्रीतो महामनाः // 159 // विवाहं कारयामास दमयन्त्या नलस्य च / उष्य तत्र यथाकामं नैषधो द्विपदां वरः // 16 // भीमेन समनुज्ञातो जगाम नगरं स्वकम् / अवाप्य नारीरत्नं तु पुण्यश्लोकोऽपि पार्थिवः // 16 // रेमे सह तया राजञ्छच्येव बलवृत्रहा। अतीव मुदितो राजा भ्राजमानोंऽशुमानिव // 162 //

Page Navigation
1 ... 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590