Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass
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________________ 565 परिशिष्टम्-३ शरणं प्रति देवानां प्राप्तकालममन्यत / वाचा च मनसा चैव नमस्कारं प्रयुज्य सा // 135 // देवेभ्यः प्राञ्जलिभूत्वा वेपमानेदमब्रवीत् / "हंसानां वचनं श्रुत्वा यथा मे नैषधो वृतः / पतित्वे तेन सत्येन देवास्तं प्रदिशन्तु मे // 136 // मनसा वचसा चैव यथा नाभिचराम्यहम् / तेन सत्येन विबुधास्तमेव प्रदिशन्तु मे // 137 // यथा देवैः स मे भर्ता विहितो निषधाधिपः / तेन सत्येन मे देवास्तमेष प्रदिशन्तु मे // 138 // यथेदं व्रतमारब्धं नलस्याराधने मया / तेन सत्येन मे देवास्तमेव प्रदिशन्तु : मे // 139 // स्वं चैव रूपं कुर्वन्तु लोकपाला महेश्वराः / यथाहमभिजानीयां पुण्यश्लोकं नराधिपम्" // 240 // निशम्य दमयन्त्यास्तत् करुणं प्रतिदेवितम् / निश्चयं परमं तथ्यमनुरागं च नैषधे // 141 // मनोविशुद्धि बुद्धिं च भक्ति रागं च नैषधे / यथोक्तं चक्रिरे देवाः सामर्थ्य लिङ्गधारणे // 142 // सापश्यद् विबुधान् सर्वानस्वेदान् स्तब्धलोचनान् / हृषितस्रग्रजोहीनानस्थितानस्पृशतः क्षितिम् // 143 // छायाद्वितीयो म्लानस्रग्रज:स्वेदसमन्वितः / भूमिष्ठो नैषधश्चैव निमेषेण च सूचितः // 144 // सा समीक्ष्य तु तान् देवान् पुण्यश्लोके च भारत / नैषधं वरयामास भैमी धर्मेण पाण्डव // 145 / / विलज्जमाना वस्त्रान्तं जग्राहायतलोचना / स्कन्धदेशेऽसृजत् तस्य स्रज परमशोभनाम् // 146 / / वरयामास चैवैनं पतित्वे वरवणिनी। ततो हाहेति सहसा मुक्तः शब्दो नराधिपः // 147 // देवैमहर्षिभिस्तत्र साधु साध्विति भारत / विस्मितैरीरितः शन्द: प्रशंसद्भिर्नलं नृपम् // 148 //

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