Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 581
________________ पदोपहारेऽनुप० (8 / 22) पद्भ्यां नृपः संचर० (6 / 57) पद्माङ्कसमानमवे० (749) पयोधिलक्ष्मीमुषि (11117) पयोनिलीनाभ्र० (1 / 108) परवति दमयन्ति (3 / 134) परस्परस्पर्शरसो० (6155) परिखावलयच्छलेन (2 / 95) परिमृज्य भुजा (2050) परिष्वजस्वा० (9 / 116) परेतभतुमनसेव (6 / 109) पर्यङ्कतापन्नसर० (3.66) पर्यभूद्दिनमणि (5 / 6) पर्वतेन परिपीय (5 / 44) पवित्रमत्रातनुते (112) पश्यन् स तस्मिन् (6.18) पश्याः पुरन्ध्रीः (6 / 39) पाणये बलरिपो (5 / 45) पाणिपीडनमहं (5 / 99) पातु{शालेख्य / 3 / 104) पार्थिवं हि निज० (5 / 15) पिकरुतिश्रुति (4 / 35) पिकस्य वाङ्मात्र० (8 / 64) पिकाद्वने शृण्वति (1188) पितुनियोगेन / 3 / 72) पीयूषधारानध० (3 / 42) पुंसि स्वभर्तृव्यति० (6 / 43) पुण्ये मनः कस्य (8 / 17) नैषधीयचरिते पुत्री सुहृद्येन (877) पुमानिवास्पशि (6 / 47) पुरः सुरीणां (9 / 28) पुरस्थितस्य (6 / 141) पुरभिदा गमिता (476) पुराकृति स्त्रण (7 // 15) पुरा परित्यज्य (8 / 23) पुरा हठाक्षिप्त (1197) पुष्पाणि बाणाः (787) पुष्पेषुश्चिकुरेषु (3 / 128) पूर्वपुण्यविभव० (5 / 17) पृथुवर्तुलतन्नि० (2 // 36) पौरस्त्यशैलं जन० (8152) पौष्पं धनुः किं (7 / 24) प्रकाममादित्य० (1 / 115) प्रकृतिरेतु गुणः (4 / 23) प्रक्षीण एवायुषि (6 / 100) प्रतिप्रतीकं (72) प्रतिमासमसौ (2158) प्रतिहट्टपथे (2 / 85) प्रतीपभूपैरिव (1 / 13) प्रत्यङ्गमस्या० (7 / 19) प्रत्यतिष्ठिपदलं (5 / 96) प्रथमं पथि लो० (2065) प्रभुत्वभूम्ना (9 / 109) प्रयातुमस्माक (1 / 69) प्रवसते भरतार्जुन (5 / 134) / प्रसीद तस्मै (9 / 53)

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