Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass
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________________ परिशिष्टम्-४ माममीभिरिह (5 / 90) मीयतां कथमभी० (5 / 83) मीलन्न शेके (6 / 21) मुखपाणिपदाक्षिण (2 / 96) मुखरयस्व यशो (4153) मुग्धः स मोहात्सु (8 / 39). मुद्रितान्यजन० (5 / 12) मुनिर्यथात्मान (9 / 121) मुनिद्रुमः को (1196) मुहूर्तमानं भव (1 / 136) मृगया न विगीयते (2 / 9) मृमस्य नेत्रद्वितयं (8 / 40) मृषाविषादा (1151) मेनका मनसि (5151) यं प्रासूत सहस्र० (5 / 136) यं बभार दहनः (5 / 63) यः प्रेर्यमाणोऽपि (679) यत्पथावधिरणुः (5 / 29) यत्प्रत्युत त्वन्मृदु (8182) यत्प्रदेयमुपनीय (5 / 85) यत्रावदत्तामति० (6 / 68) / यत्रकयालीकन० (6 / 61) यथा कृतिः काचन (828) यथातथा नाम गिरः (9 / 29) यथायथेह त्वदु० (9 / 20) यथोह्यमानः (1332) यदक्रम विक्रमज० (84) यदगारघटा (2189) यदतनुज्वरभाक् (4 / 2). 'यदनुस्त्वमिदं (4 / 93) यदतिविमलनील (3 / 103) यदम्बुपूरप्रति (1 / 116) यदवादिष० (2011) यदस्य यात्रासु (108) यदापवापि (9 / 142) यदि त्रिलोकी (3 / 40) यदि प्रसादीकुरुते (7 / 43) यदि स्वभावान्मम (9 / 10) यदि स्वमुन्धुमना (9 / 46) यन्मती विमल० (5 / 106) यशः पदाङ्गुष्ठ० (8 / 160) यशो यदस्याजनि (3 / 39) यस्तन्वि भर्ता (8180) यस्ते नवः पल्लवितः (3 / 121) यस्मिन्नलस्पृष्ट० (6 / 35) यां मनोरथमयीं (5 / 109) याचमानजनमान० (5 / 88) याचितश्विरयति (5 / 126) यानेन तन्व्या (7 / 102) | यानेन देवान्न (6 / 85) यान वरं प्रति परे (5 / 132) यापदृष्टिरपि (5 / 120) यामिकाननु० (5 / 110) यामि यामिह (5 / 107) यावदागमयतेऽथ (5 / 1) युवद्वयौचित्त० (1195)

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