Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 563
________________ नैषधीयचरिते अहमिन्द्रोऽयमग्निश्च तथैवायमपां पतिः / शरीरान्तकरो नृणां यमोऽयमपि पार्थिवः // 67 // त्वं वै समागतानस्मान् दमयन्त्यै निवेदय / लोकपाला महेन्द्राद्याः समायान्ति दिदृक्षवः // 68 // प्राप्तुमिच्छन्ति देवास्त्वां शक्रोऽग्निवरुणो यमः / तेषामन्यतमं देवं पतित्वे वरयस्व ह // 69 // एवमुक्तः स शक्रेण नल: प्राञ्जलिरब्रवीत् / "एकार्थं समुपेतं मां न प्रेषयितुमर्हथ // 70 // कथं तु जातसंकल्पः स्त्रियमुत्सृजते पुमान् / परार्थमीदृशं वक्तुं तत् क्षमन्तु महेश्वराः' // 71 / / देवा ऊचुः 'करिष्य' इति संश्रुत्य पूर्वमस्मासु नैषध / न करिष्यसि कस्मात् त्वं व्रज नैषध मा चिरम्" // 72 // एवमुक्तः स देवस्तै षधः पुनरब्रवीत् / 'सुरक्षितानि वेश्मानि प्रवेष्टु कथमुत्सहे / / 73 / / 'प्रवेक्ष्यसीति तं शक्रः पुनरेवाभ्यभाषत / जगाम सतथेत्युक्त्वा दमयन्त्या निवेशनम् / / 74 // ददर्श तत्र वैदर्भी सखीगणसमावृताम् / देदीप्यमानां वपुषा श्रिया च वरवर्णिनीम् // 75 // अतीव सुकुमाराङ्गी तनुमध्यां सुलोचनाम् / आक्षिपन्तीमिव प्रभां शशिनः स्वेन जसा // 76 // तस्य दृष्टव ववृधे कामस्तां चारहासिनीम् / संत्यं चिकीर्षमाणस्तु धारयामास हृच्छयम् // 77 // ततस्ता नैषधं दृष्ट्वा सम्भ्रान्ताः परमाङ्गनाः / भासनेभ्यः समुत्पेतुस्तेजसा तस्य धर्षिताः // 78 // प्रशशंसुश्च सुप्रीता नलं ता विस्मयान्विताः / न चैनमभ्यभाषन्त मनोभिस्त्वभ्यपूजयन् // 79 // अहो रूपमहो कान्तिरहो धैर्य महात्मनः / कोऽयं देवोऽथवा यक्षो गन्धर्वो वा भविष्यति // 80 //

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