Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass
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________________ परिशिष्ठम्-३ विदर्भराज्ञो दुहिता दमयन्तीति विश्रुता। रूपेण समतिक्रान्ता पृथिव्यां सर्वयोषितः // 53 // तस्याः स्वयंवरं शक्र ! भविता न चिरादिव / तत्र गच्छन्ति राजानो राजपुत्राश्च सर्वशः // 54 // तां रत्नभूतां लोकस्य प्रार्थयन्तो महीक्षितः। कांक्षन्ति स्म विशेषेण बल-वृत्रनिषूदन // 55 // * एतस्मिन् कथ्यमाने तु लोकपालाश्च साग्निकाः / आजग्मुर्देवराजस्य समीपममरोत्तमाः // 56 // ततस्ते शुश्रुवुः सर्वे नारदस्य वचो महत् / श्रुत्वैव चाब्रुवन् हृष्टा गच्छामो षयमप्युत // 57 // ततः सर्वे महाराज्ञे सगणाः सहवाहनाः / विदर्भाननुजग्मुस्ते यतः सर्वे महीक्षितः // 58 // नलोऽपि राजा कौन्तेय श्रुत्वा राज्ञां समागमम् / अभ्यगच्छददीनात्मा दमयन्तीमनुव्रतः // 59 / / अथ देवाः पथि नलं ददृशुभूतले स्थितम् / साक्षादिव स्थितं मूर्त्या मन्मथं रूपसम्पदा // 60 / तं दृष्ट्वा लोकपालास्ते भ्राजमानं यथा रविम् / तस्थुविगतसंकल्पा विस्मिता रूपसम्पदा // 61 // ततोऽन्तरिक्षे विष्टभ्य विमानानि दिवौकसः / अब्रुवन् नैषधं राजन् अवतीयं नमस्तलात् // 62 // भो भो निषधराजेन्द्र नल सत्यवतो भवान् / अस्माकं कुरु साहाय्यं दूतो भव नराधिप // 63 // तेभ्यः प्रतिज्ञाय नल: 'करिष्य' इति भारत / अर्थतान् . परिपप्रच्छ कृताञ्जलिरुपस्थितः // 64 // के वै भवन्तः कश्चासी यस्याहं दूत ईप्सितः / किं च तद् वो मया कार्य कथयध्वं यथातथम् // 65 // एवमुक्तो नैषधेन मघवानभ्यभाषत / अमरान् वै निबोधास्मान् दमयन्त्यर्थमागतान् // 66 //

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