________________ नवमः सर्गः सामान्य-पुष्परूपेणव वर्ण्यते स्मेत्यर्थः किन्तु तन प्रसूनम् कतमत किजातीयम् इति विशेषात् विशेषरूपेण सा वर्णना न असूत / तदा दूतो नल एवास्तीति ज्ञानकाले मुदः हर्षस्य अश्रुणा अस्रेण प्रावृषि वर्षतौ हर्षम् उन्निद्रत्वम् आगतैः प्राप्तः उत्थितरित्यर्थः लोमभिः रोमभिः ( कर्तृभिः ) तत् दमयन्ती-शरीरम् कदम्बम् कदम्बपुष्पम् अवणि वर्णितम्, यदैव दमयन्त्या ज्ञातम् दूत-छद्मनि एष नलोऽस्तीति तदैव हर्षाश्रूणि स्रवन्ती हर्षे रोमाञ्चिता च सती सा शरीरतः प्रावृषि विकसितस्य रोमाञ्चवदुत्थितकेसरस्य कदम्बपुष्पस्य शोभां धत्ते स्मेति भावः // 130 // व्याकरण-वर्णना/ वर्ण + युच , यु को अन + टाप् / कतमत् किम् + डतमच ( निर्धारणे) / मुद्/मुद् + क्विप् ( भावे ) / अर्वाणVवर्ण + लुङ (कर्मवाच्य)। अनुवाद-उस ( दमयन्ती ) के शरीर का वर्णन ( पहले ) 'पुष्प है' यों सामान्य रूप से होता था। 'वह ( पुष्प ) कौन-सा है। इस तरह उसका विशेष रूप से वर्णन नहीं होता था ! अब ( नल का ज्ञान होते समय ) हर्ष के आंसुओं ने वर्षा-ऋतु में उठे रोमों ( रोमांचों-केसरों) ने वह (पुष्प ) कदम्ब कह दिया है / / 139 // टिप्पणी-आँसू बहना शोक और हर्ष-दोनों में होता है / पहले दमयन्ती के आंसू विरह-दुःख में झड़ी लगाते थे जैसे कि हम पीछे श्लोक 96 में देख आए हैं / अब अपने सामने नल को देखकर हर्ष के आंसुओं की झड़ी लगा रहे हैं / हर्षाश्रुओं के साथ 2 उसे रोमाञ्च भी हो रहा है। अब उसका शरीर कदम्ब पुष्प बना हुआ है जो वर्षाऋतु में विकसित होता है और और जिसके सीधे उठे हुए केसर रोमाञ्च का साम्य अपनाये रहते हैं। इस सम्बन्ध में सर्ग 5 का श्लोक 78 देखिए। यहां विद्याधर अतिशयोक्ति कह रहे हैं। वह इस रूप में है कि 'हर्षमागतः लोमभिः' में रोमाञ्चों और उत्थित केसरों का अभेदाध्यवसाय हो रखा है हर्ष उदय होने से भावोदयालङ्कार है / 'वर्ण' 'वणि' में छेक' अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / / 139 // मयैव संबोध्य नलं व्यलापि यत्स्वमाह मबुद्धमिद विमृश्य तत् / असाविति भ्रान्तिमसाद्दमस्वसुः स्वभाषितस्वोभ्रमविभ्रमक्रमः // 10 //