Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 546
________________ नवमः सर्गः 543 नायाम् ? अत एव यः न स्पृश्यते, न च दृश्यते, कामस्य देहराहित्यात् चण्डालस्य च धर्मशास्त्रानुसारेण अस्पृश्यत्वात् दर्शननिषेधात् च, त्वयि नले जयति सौन्दर्ये विजयं प्राप्नुवति सति कृता छिन्ना अङ्गुली कनिष्ठागुली ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतः (ब० वी० ) अनङ्गः न अङ्गम् अङ्गुलीविशेषो यस्य तथाभूतः ( नन् ब० वी० ) विकृताङ्गः अङगुलिविहीन इति यावत्, परिचायक-चिह्नरूपेण चण्डालस्याङ्गुलीच्छेदविधानात् च ख्यातः प्रसिद्धः अस्ति, वनस्य अरण्यस्य स्थानम् प्रदेशः (10 तत्पु० ) तस्मिन्नित्यधिवनस्थानम् ( अव्ययी०) मधुम् वसन्तम् मित्रम् सखायम् कृत्वा सम्पाद्य वसन्तात् साहाय्यं लब्ध्वेत्यर्थः अन्तः हृदये दमयन्त्या इतिशेषः चरित्वा प्रविश्य, अथ च वनप्रदेशे मधुम् लक्षणया मधुपायिनं मद्यपमिति यावत् मित्रं कृत्वा अन्तः गृहमध्ये चरित्वा सख्या? दमयन्त्याः प्राणान् असून् हरति नयति तत् तस्मात् हरितः दिशः तव यश: कीर्तिम् (10 तत्पु० ) जुषन्ताम् सेवन्ताम् त्वत्प्रयुक्तः कामचण्डालः वसन्तं मित्रं सह कृत्वा मत्सख्याः प्राणान् हरतु, एतेन च त्वत्कीर्तिः चतुर्दिक्षु प्रसरत्विति सोत्प्रासमुक्तिः अर्थात् स्वकामचाण्डालेन मत्सखीं मारयित्वा तेऽपकीतिर्जगति प्रसरत्विति भावः // 156 // व्याकरण-सरल है / अनुवाद-"( हे नल ! ) तुम्हारा काम ( अनुराग ) भीषण बाणों वाला चण्डाल है क्या, जिसे न तो छूते हैं और न ही देखते हैं और जो 'अनङ्ग' काट दी गई है ? वन-प्रदेश में बसन्त को मित्र बनाकर वह हृदय के भीतर घुसके सखी ( दमयन्ती ) के प्राणों का हरण कर रहा है / इससे दिशायें तुम्हारा यश प्राप्त कर लें" // 156 // टिप्पणी-इस श्लोक में कवि ने श्लिष्ट भाषा का प्रयोग करके अर्थ में कुछ क्लिष्टता ला दी है। हमने इसकी व्याख्या नारायण के अनुसार की है। वस्तुतः बात यह है कि नल के गुणों को देखकर दमयन्ती में नल का ( नलविषयक ) काम (प्रेम ) उत्पन्न हो बैठा जो भाव-रूप अर्थात् अमूर्त होने के कारण न तो छूने में आता है, न देखने में। इसी लिए वह अनङ्ग भी कहलाता है। वसन्त ने उसका साथ दिया कि वह बेचारी दमयन्ती के प्राणहरण पर

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