________________ नवमः सर्गः टिप्पणी-यौवनारूढ़ और हार आदि गहनों से सजी-धजी दमयन्ती एकदम देखने वाले में काम पैदा कर देती है। इस बात को लेकर नल उस पर साक्षात् साकार काम-नाटिका का आरोप कर रहे हैं। नाटिका नाटक का ही एक छोटा रूप होता है, जो शृङ्गाररस-प्रधान होती है। कामदेव ने दमयन्ती के रूप में नाटिका की रचना की है। यौवनावस्था की द्योतक शरीर पर उगी रोमाचली बनी सूत्रधार; हार में चन्द्रमा से भी अधिक उज्वल नायक ( मेरु) बना कथानायक जो सिर पर रत्न बाँधे मित्र ब्राह्मण विदुषक के साथ दमयन्ती के अङ्ग-सञ्चालन पर रीझा जा रहा है। इस तरह दमयन्ती पर नाटिकात्वारोप में रूपक है, जिसका श्लिष्ट भाषा में प्रयुक्त विभिन्नार्थबाचक विशेषणों में अभेदाध्यवसाय से होने वाली अतिशयोक्ति के साथ संकर है। सूत्रमिव' में लुप्तोपमा है / शब्दालङ्कार वृत्त्यनुप्रास है // 118 // . शुभाष्टवर्गस्त्वदनङ्गजन्मनस्तवाधरेऽलिख्यत यत्र लेखया। मदीयदन्तक्षतराजिरञ्जनः स भूजंतामर्जतु बिम्बपाटलः // 119 // अन्वयः-(हे भैमि ! ) त्वदङ्ग जन्मनः अष्टवर्गः यत्र तव अधरे लेखया अलिख्यत, बिम्ब-पाटलः स मदीय'रञ्जनैः भूर्जताम् अर्जतु / टोका-हे भैमि ! तव अनङ्गस्य कामस्य जन्मन: उत्पत्तेः शुभः शुभसूचकः अष्टवर्गः ज्योतिःशास्त्रानुसारं जातकस्य जन्मपश्यां कृता जन्मकालीना अष्टरेखाः ( कर्मधा० ) यत्र तव ते अधरे अधरोष्ठे लेखया रेखाभिः ( जातावेकवचनम् ) अलिख्यत विधातृ-रूपेण ज्योतिर्विदा लिखितः इत्यर्थः, बिम्बवत् बिम्बफलवत् पाटल: रक्तवर्णः ( उपमान तत्पु० ) सः अधरः ममेति मदोया या दन्तक्षतराजिः (कर्मधा० ) दन्तैः दशनैः यानि क्षतानि दंशाः ( तृ० तत्पु०) तेषां राजि: पंक्तिः ( 10 तत्पु० ) तया रञ्जन: रंजन-व्यापारैः ( तृ० तत्पु० ) भूर्जताम् भूर्जपत्रताम् अर्जतु प्राप्नोत्वित्यर्थः। तवाधरोष्ठ-गता अष्टरेखाः कामोत्पत्तो भूर्जपत्रोपरि जन्मपत्रिकायां मद्दन्तक्षतैः लिखितोऽष्टवर्गों भवत्विति भावः // 119 // व्याकरण-अधरे यास्कानुसार अधः ऋच्छतीत्यूर्ध्वगतिः प्रतिषिद्धा / लेखा लिख्यते इति लिख + अ ( भावे ) + टाप / मदीय अस्मत् +छ, छ को ईय अस्मत् को मदादेश / अनुवाद-"(हे भैमी ! ) तुम्हारे काम ( अनुराग ) के जन्म का शुभ