________________ 512 नैषधीयचरिते अपराधेन दोषेण सहितः सापराधः ( ब० वी० ) अपराधीत्यर्थः तस्य भावः तत्ता ताम् निजाम् सापराधताम् ( कर्मवा० ) पश्थन् विलोकयन् मनसि विचार. यन्नित्यर्थः कूट: मिथ्या चासो साक्षी कूटसाक्षी ( कर्मधा० ) अकूटसाक्षिणा कूटसाक्षिणा भूयते इति भवनम् तस्य उचितः योग्यः (ष० तत्पु०) न भवतीति शेषः देवकार्यसिद्धयर्थ यावच्छक्यं प्रयत्यापि यद्देवकार्य न सिद्धम्-अस्मिन् विष ये भवान् आत्मानम् एवापराधिनं मन्यसे यन्मया स्वप्रकाशनं कृत्वा स्वकार्य न साधितमिति, तन्न भवता मन्तव्यमिति भावः हि यतः सताम् सज्जनानाम् चेतसः मनसः शुचिता शुद्धत्वम् (10 तत्पु० ) आत्मा साक्षी साक्षाद् द्रष्टा (कर्मधा० ) यस्यां तथाभूता (ब० वी०) भवतीति शेषः / इदमनुचितम् उचितं वा मया कृतमित्यत्र सताम् आत्मैव साक्षी भवति, न त्वन्यः इति भावः / / 129 / / व्याकरण-अर्थः यास्कानुसार अर्थ्यते इति / प्रयस्य प्र + /यस् + ल्यप् / सुरेषु इसके लिए सर्ग 5 श्लो० 34 देखिए / साक्षी इसके लिए पीछे श्लो० 117 देखिए / साक्षीभवनम् साक्षिन् + वि +/भू + ल्युट ( भावे ) / __ अनुवाद-"( ओ नल! ) उन ( देवताओं ) का काम बनाने हेतु इतना प्रयत्न करके भी देवताओं के प्रति अपने को अपराधी देखते हुए आपका झूठा साक्षी बनमा ठीक नहीं है, क्योंकि सत्पुरुषों की मन:-शुद्धि का साक्षी अपनी आत्मा ( ही ) हुआ करती है" // 129 // टिप्पणी-साक्षी-गवाह-दो तरह का होता है-एक झूठा और दूसरा सच्चा। झठे गवाह को धर्मशास्त्र में कूटसाक्षी कहा गया है। स्वार्थ-वश या दूसरे का काम बन जाय-इस उद्देश्य से लोग झूठी गवाही दे बैठते हैं / नल भी अपने को देवताओं का अपराधी बतलाते हुए कूटसाक्षी बन रहे हैं। उनका यह कहना कि अपने को प्रकट करके मैंने अपना ही काम बनाया है, देवताओं का काम नहीं बनने दिया है, सरासर झूठ है, कूट-साक्ष्य है / सच तो यह है कि उन्होंने अपनी ओर से कर्तव्य निभाने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। यह तो प्रतिकूल विधाता था जिसने नल को उन्मत्त बनाया और देवताओं का काम बिगाड़ा। नल का हृदय अपने में बिलकुल शुद्ध है और इसका साक्षी उनकी आत्मा है। कालिदास ने भी कहा है:-सतां हि सन्देह-पदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्तः करणप्रवृत्तयः' / यहाँ चतुर्थपाद-गत सामान्य बात पूर्वोक्त विशेष बात का समर्थन