________________ 408 नैषधीयचरिते क्वचित कुत्रचित् स्थाने अथवा समये अपथेन कुमार्गेण गम्यते चल्यते / राजमार्गों यदि पंक-पूर्णो दुर्गमश्च स्यात् तहि अगतिकगत्या विद्वांसः कुमार्गेणापि गच्छन्तो न दुष्यन्तीति भावः / / 36 // व्याकरण-आपद् आ + /पद् + क्विप् ( भावे ) क्रिया कृ + श, रिङ् आदेश, इयङ + टाप / पिच्छिले पिच्छ + इलच / अपथेन न + पथिन् + समासान्त (विकल्प से, अन्यथा अपन्थाः ) और नपुं० / गम्यते ( भाववाच्य ) / अनुवाद--जहाँ संकट आ पड़ने पर अच्छा काम रक्षा नहीं करता हो, तो वहाँ निषिद्ध काम भी करना पड़ जाता है। कारण कि राजमार्ग के मेघ-जल से फिशलन वाला बन जाने पर विद्वान् लोगों तक को भी कभी-कभी गलत राह से जाना पड़ता है / / 36 // टिप्पणी-दमयन्ती के आत्मघात की बात से शंका हो सकती है कि आत्मघात तो बड़ा निषिद्ध काम है, महापाप है। वेद में लिखा हुआ है'अन्धंतमः प्रविशन्ति ये के चात्महनो जनाः' अर्थात् आत्मघाती घोर नरक जाते हैं / वात तो ठीक है किन्तु जब प्राणों पर आ पड़ती है तो वैसी परिस्थिति में लाचार होकर आत्मघात पर उतारू होना ही पड़ता है। नल के बिना दमयन्ती पर काम-वेदना का कितना महान संकट अचिकित्सितव्य रोग है। प्राणत्याग ही उसका प्रतीकार हो सकता है और नहीं इसी लिए ऐसे ऐसे अचिकित्स्य असाध्य रोगों से छुटकारा पाने हेतु शास्त्रों ने भृगुपात आदि द्वारा आत्मघात की अनुमति दे रखी है, देखिए मनु-'अपराजितां वास्थाश्र व्रजेद्दिशमजिह्मगः / आनिपाताच्छरीरस्य युक्तो वार्य निलाशनः' ( 6 / 32) विद्याधर ने यहाँ अर्थान्तरन्यास कहा है, क्योंकि दमयन्ती द्वारा आत्मघात की विशेष बात को उत्तराध गत सामान्य बात से समर्थन किया जा रहा है, लेकिन मल्लिनाथ दोनों बातों को विशेष ही मानकर उनके बिम्बप्रतिबिम्वभाव में दृष्टान्त कह रहे हैं। हमारे विचार से तो उत्तरार्ध गत बात सामान्य ही है। अपि शब्द से औरों का तो कहना ही क्या-यह अर्थ निकलने से अर्थापत्ति है। ‘पथे' 'पथे' में छेक, अन्यत्र वृत्यनुप्रास है / / 36 // स्त्रिया मया वाग्मिषु तेषु शक्यते न जातु सम्यग्वितरीतुमुत्तरम् / तदत्र मद्भाषितसूत्रपद्धती प्रबन्धृतास्तु प्रतिबन्घृता न ते // 37 / /