________________ नैषधीयचरिते ___टीका-सा दमयन्ती यस्य देवदूतस्य नलस्य इमाः पूर्वोक्ताः गिरः वचनानि चेतसा मनसा विचिन्त्य विचार्य तथा एवमेव भवेत् इति सम्प्रत्ययम् विश्वासम् आससाद प्राप्तवती देवाः मे स्वयंवरे संकटमापातयिष्यन्तीति नलेन यदुक्तं तस्मिन् सर्वस्मिन् सा पूर्णविश्वासमकरोदिति भावः / तत्पश्चात् च सा निवारितः अपनीतः प्रतिषिद्ध इति यावत् अवग्रहः वर्षाविघातः वृष्टिनिरोधः अवर्षणमिति यावत् ( कर्मधा० ) ( 'वृष्ठिवर्ष, तद्विघाते 5 वग्राहावग्रही समी' इश्यमरः ) यस्य तथाभूतः (ब० वी० ) अप्रहित-प्रसरः इति यावत् नोर-निर्झर ( कर्मधा० ) नीरस्य जलस्य अश्रृणामित्यर्थः निर्झरः प्रवाहः (10 तत्पु०) ययोस्तथाभूते (ब० वी० ) दृशौ लोचने नभाः श्रावणमासश्च नभस्यः भाद्रपदमासश्चेति ( द्वन्द्व ) तयोः भावः तत्त्वम् ('नभाः श्रावणिकश्च सः,' 'स्युनभस्य-प्रोष्ठपद-भाद्रभाद्रपदाः समाः' इत्यमरः अलम्भयत् प्रापितवती / श्रावण-भाद्रपदमासौ यथा अप्रतिहत-वृष्टि-प्रवाह कुरुतः तथैव दमयन्त्या नयने अपि सतताश्रुप्रवाहमकुरुतामित्यर्थः, सा विषादे भृशं रुरोदेति भाव: / / 84 / ___ व्याकरण-गिरः गीयते इति /ग + किम् ( भावे ) चेतसा चेत्यते अनेनेति -/चित् + असुन ( करणे ) / सम्प्रत्ययम् सम् + प्रति + Vइ + अच् (भावे) / अलम्भयत् लभ + णिच + लङ। ___ अनुवाद-उस ( दूत ) की उन बातों पर मन से विचार करके वह ( दमयन्ती) 'ऐसा हो सकता है। इस तरह विश्वास कर बैठी। ( बाद को ) वह सूखा मिटाये ( अश्रु ) जल के झरने वहाने वाली आँखों को सावन-भादौ बना बैठी // 84 // टिप्पणी- हम देखते हैं कि श्रावण और भाद्रपद में जब सूखा पड़ जाता है तो पानी का बूंद तक नहीं गिरता, लेकिन सूखा न रहने पर मूसलाधार पानी बरसता है। ये दो ही महीने घोर वर्षा के होते है। देवताओं द्वारा स्वयंवर में विघ्न डालने पर निश्चय ही मेरा विवाह नहीं होने पाएगा-ऐसा विश्वास होने से विषाद के कारण दमयन्ती की आँखो में लगातार आँसुओं की सावन-भादौं की झड़ी लग गई। विद्याधर यहाँ अतिशयोक्ति लिख रहे हैं। उनकी दृष्टि में संभवतः वृष्टिजल और अश्रुजल में अभेदाध्यवसाय हो रखा है। नयनों पर श्रावणत्व, और भाद्रपदत्व का आरोप होने से रूपक है। 'तीर, नीर,' तथा नभोनभ में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 84 //