________________ 488 नैषधीयचरिते टिप्पणी-मस्तक से चरणरज पोछने के साथ 2 अपराध भी पोछने में सहोक्ति है, 'जसके मूल में कार्य-कारण पोपियं-विपर्यय वाली अतिशयोक्ति काम कर रही है। वैसे तो पहले चरणों में मस्तक रखना रूप कारण होता है, उसके पश्चात् कार्य-रूप अपराध-प्रोञ्छन का क्रम है, जिसका यहाँ भंग हो रखा है। इसके साथ यहाँ तुल्ययोगिता भी है / जल और अपराध इन दोनों प्रस्तुत-प्रस्तुतों ( उपमेयों ) का एक क्रिया रूप धर्म 'परिमार्जयामि' से सम्बन्ध बताया जा रहा है / 'परिमार्जयामि' में श्लेष है, जिसका अश्रृजल के साथ 'पोंछना' अर्थ है जबकि अपराध के साथ 'प्रायश्चित्त करना' / 'मिल' 'मौलि' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 106 / / मम त्वदच्छाघ्रिनखामृतातेः किरीटमाणिक्यमयूखमञ्जरी। उपासनामस्य करोतु रोहिणी त्यज त्यजाकारणगेषणे ! रुषम् / 107 / / अन्वयः-( हे दमयन्ति ! ) मम रोहिणी किरीट' मञ्जरी रोहिणी अस्य त्वदच्छा 'द्युतेः उपासनाम् करोतु / हे अकारण-रोषणे ! रुषम् त्यज त्यज / टीका-( हे दमयन्ति ! ) मम रोहिणी रक्तवर्णा किरीटस्य मुकुटस्य यानि माणिक्यानि रत्नानि तेषां मयूखाः किरणाः किरणावलीति यावत् ( उभयत्र ष० तत्पु० ) मञ्जरी बल्लरी इव ( उपमित तत्पु० ) रोहिणी नक्षत्रविशेषः चन्द्रपत्नीति यावत् अस्य पुरो दृश्यमानस्य तव अज्रयोः चरणयोः अच्छनखाः स्वच्छ-कररुहाः ( उभयत्र 10 तत्पु० ) एव अमृतधुतिः चन्द्रः तस्य ( कर्मधा० ) अमृतं द्युतिषु यस्य तथाभूतस्य ( ब० वी. ) उपासनाम से वाम् करोतु विद्धातु / मन्मुकुरस्थ रत्नावलीनाम् मञ्जरीसदृश-किरणावलीरूपा रोहिणी (तारा) त्वच्चरणनखचन्द्र सेवताम्, रत्नखचितं मे मुकुटं अपराधप्रायश्चित्तस्वरूपं तव चरणयोः पतत्विति यावत् / न कारणं यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात्तथा ( नन ब० वी) रुष्यति कुप्यति तत्सम्बुद्धी ( उपपद तत्पु० ) हे अकारण-रोषणे दमयन्ति ! रुषम् कोपम् त्यज त्यज मुञ्च मुञ्च / / 107 // ___ व्याकरण-रोहिणी रोहित + ङीप्, त को न ( वर्णादनुदात्तात् 0' 4 / 1 / 31) / रोषणे ! रुष्यतीति /रुष् + युच् ( कर्तरि ) + टाए सम्बो० / त्यज त्यज शीघ्रता अर्थ में द्विरुक्ति अर्थात् शीघ्र छोड़। रुषम/रुष् + क्विप् ( भावे ) द्वि०।