________________ 483 नवमः सर्गः व्याकरण-दूत्यम् इसके सम्बन्ध में पिछला श्लो० देखिए / ललित / लल् + क्त ( भावे)। करम्बिता करम्बः (भः) सञ्जातोऽस्येति करम्ब + इतन् / वैसे करम्ब दघि मिश्रित सक्त को कहते हैं, किन्तु लक्षणा से यह शब्द मिश्रित अर्थ में प्रयुक्त होने लगा है। इत्थम् इदम् + थम् (प्रकारार्थ ) / ___ अनुवाद–तदनन्तर वे ( नल) इन्द्र के दूत-कर्म आदि निज सभी कुछ ( बातें ) भूलकर मन में चक्कर काट रही, विलास भरी प्रिया की चेष्टाओं की कल्पना करते हुए इस तरह यों ही विलाप कर बैठे // 102 // टिप्पणी-इस श्लोक में कवि प्रायः पूर्वोक्त श्लोक का अर्थ दोहरा रहा है। नल उन्मादावस्था में आ गए हैं और उसके कारण दमयन्ती के साथ आलिङ्गन, प्रणय-कलह आदि चेष्टाओं की कल्पना करते हुए, यों ही प्रलापकरने लग जाते हैं। विद्याधर विरोधाभास कह रहे है जो हमारी समझ में नहीं आता / शब्दालङ्कार वृत्त्यनुप्रास है // 102 // अयि प्रिये ! कस्य कृते विलप्यते विलिप्यते हा मुखमश्रुबिन्दुभिः / पुरस्त्वयालोकि नमन्नयं न किं तिरश्चलल्लोचनलीलया नलः // 10 // अन्वयः-अयि प्रिये ! कस्य कृते ? विलप्यते / हा! ( कस्य कृते ) मुखम् अ बिन्दुभिः विलिप्यते ? तिर 'लया त्वया पुरः नमन् अयम् नलः न आलोकि किम् ? .. टोका-अयि प्रिये / प्रियतमे ! कस्य कृते विलप्यते किमर्थम् विलप्यते ? त्वया विलापः क्रियते ? हा! कस्य कृते अश्रणां बिन्दुभिः पृषद्भिः (10 तत्पु० ) मुखम् आननम् विलिप्यते दिह्यते अश्रुपातेन मुखं प्रदूष्यते अमङ्गलत्वादित्यर्थ: तिरः वक्रं यथा स्थात्तथा चलन्ती प्रसरन्ती ( सुप्सुति समासः) या लोचन लीला (कर्मधा० ) लोचनयोः नयनयोः लीला अथवा तिर्यक् चलतोः लोचनयोः { कर्मधा० ) लीला विलासः तया (10 तत्पु० ) अथवा लीला यस्याः तथा भूतया ( ब० वी० ) त्वया पुरः भने नमन् प्रणतो भवन अयम् एष नल: न आलोकि दृष्टः किम् ? अहम् तवाने प्रत्यक्षोऽस्मि, त्वन्तु मां परोक्षं मत्वा व्यर्थमेवोपालभसे इति भावः // 103 // व्याकरण-विलप्यते वि/लप् + लट् ( भाववाच्य ) बिन्दुः इसके लिए पीछे श्लोक० 85 देखिए / विलिप्यते वि + लिप् + लट् ( कर्मवाच्य ) ! चलन / चल् + शतृ /