________________ 362 वैषधीयचरिते भविष्यतः इति भावः / नारायणशब्देषु 'अन्योऽपि विनष्टो देवताप्रसादात् पुनरुत्पद्यतेऽधिकशक्तिकश्च भवति' // 105 // व्याकरण-प्रात्मभूः आत्मना = स्वयमेव भवति अथवा आत्मनि मनसि भवतीति आत्मन् + / + क्विप् ( कर्तरि ) रोपा रोप्यन्ते ( धनुषि ) इति /रुह् + णिच् + अच् ( कर्मणि ) ह को प / प्लुष्ट. /प्लुष् ( दाहे ) क्तः (कर्मणि ) / मानसः मनसः अयमिति मनस् + अण् / नन्दनः नन्दयतीति नन्द् + ल्यु / करि ) / मनसिजताम् मनसि जायते इति मनस् + /जन् + ड विकल्प से सप्तमी का अलुक् ( अलुक् समास ) तस्य भाव इति मनसिज + तल् + टाप् / पत्ताम् /धा + लोट् ( आत्मने ) / धन्वी धन्वास्यास्तीति धन्वन् + इन् (व्रीह्यादिभ्यश्च' 5 / 2 / 116 ) (धनुश्चासौ धन्व-शरासन०' इत्यमरः ) / जैत्रः जेता एवेति जेतृ + अण् / स्तात् / अस + लोट् ( अस्तु का वैकल्पिक रूप ) / चञ्चत्तर /चञ्च् + शतृ + तरप् ( अतिशये ) / अनुवाद-( जो ) काम धनुष-बाण तथा ध्वज-सहित ( महादेव द्वारा) भस्म कर दिया गया था, तत्पश्चात् ( अब ) वह सचमुच तुम्हारी कृपा से हमारा मानस आनन्द-दाता मानस पुत्र बना हुआ 'मनसिजता' को धारण कर ले / हे कृशाङ्गी ! तुम्हारी दो भौंहों से दो धनुषों वाला बन जाय, तुम्हारी श्वेत मुस्कानों से तीक्ष्ण ( अनगिनत ) बाणों वाला हो जाय तथा तुम्हारे दो नयनों से दो मत्स्य-रूप ध्वजचिह्न वाला हो जावे" / / 105 // टिप्पणी--शारीरिक सम्बन्ध के बिना ही केवल मन से उत्पन्न होने वाले को मानस पुत्र कहते हैं। मरीचि आदि ब्रह्मा के मानस पुत्र ही थे। कहना न होगा कि कामदेव का शरीर महादेव ने कभी का फूक दिया था, लेकिन वह अब यहाँ देवताओं के मानस पुत्र रूप में फिर उत्पन्न होने जा रहा है / यह नया उत्पन्न हुआ काम पहले से अधिक शक्तिशाली होगा। दमयन्ती की दो भौंहों के रूप में उसके एक न होकर दो धनुष होंगे, उसकी मधुर मुस्कानें उसके अगणित वाण होंगे, पांच नहीं और उसकी दो आँखों के रूप में अब एक मकरध्वज के स्थान में दो मकरध्वज चिन्ह होंगे। देवताओं के कहने का भाव यह है कि 'दमयन्ती ! तुम्हारे संगम से हमारे मनों में फिर महान् आनन्द-दायक काम भड़क उठे, और उसका ‘मनसिजत्व' अर्थवान् हो जावे, अतः हमारा वरण