________________ 304 नैषधीयचरिते उत्सहे उत्साहयुक्ताऽस्मि / पूर्व साधारणतयापि गण्यमाने कुले त्वयि समुत्पन्नेऽद्य तस्मिन् मम महान् आदरभावः समुत्पद्यते इति भावः / अत्र शब्दशक्त्या अपरोऽप्येषोऽर्थों बोध्यते तद्यथा-तमसः तिमिरस्य स्वतेजसा निवारकम् ईदृशम् अलौकिकम् नायकः हारमध्यमणिः तद्रपम् रत्नम् ( 'नायको नेतरि श्रेष्ठे हारमध्यमणावपि' इति विश्वः ) यो वंशः वेणुः ( 'वंशो वेणी कुले वर्गे' इति विश्वः) विभर्ति तम् प्राक् अन्यसाधारणवंशबुद्धया अवमानितमपि तदुत्पन्नं हारनायकभूतं रत्नं दृष्ट्वा लोका यथा गौरवास्पदीकुर्वन्ति तद्वदिति भावः // 6 // व्याकरण-तमोपहः तमस् + अप + Vइन् + ड ( कर्तरि ) ( 'अपे क्लेशतमसोः' 3 / 2 / 50 ) / भवादृशम् भवत्तल्यमिति भवत् + हश् + का व को आत्व / ईदृशम् भवादृश की तरह समझिए / कतमः किम् + /डतमच् / सामान्यम् समानस्य भाव इति समान + व्यञ् / अवमानितम् अव + मन् + णिच् + क्त ( कर्मणि ) / अनुवाद-"तम-तामस विकार शोक, क्रोध, अज्ञान आदि--को मिटा देने वाले आप-जैसे ऐसे नायक-रत्न ( स्वजाति-श्रेष्ठपुरुप ) को कौन सा वंश (कुल ) रख रहा है ? अन्य ( वंशों ) की तरह साधारण समझकर (पूर्व) अवमानित ( किन्तु ) तुम्हारे द्वारा ( आज) महत्त्व को प्राप्त हुए उसे बड़ा भारी संमान देने का मुझे उत्साह हो रहा है (जैसे ) कि (निज तेज से ) तमअन्धकार--को मिटा देने वाले ऐसे नायकरत्न (हार का मेरु-मणि) को रखने वाला जो वंश ( बाँस ) होता है, उसे ( पहले ) अन्य साधारण वाँसों की तरह अवनानित होने पर भी ( नायकरत्न पैदा करने से ) बड़ा भारी महत्त्व देने का (बाद को लोगों को) उत्साह हुआ करता है" // 6 // टिप्पणी-नल के अलौकिक गुणों को देख दमयन्ती के हृदय में उस कुल के प्रति महान् आदरभाव उमड़ पड़ा, जिसमें उसने जन्म लिया है / नल से पहले भले ही वह कुल नगण्य रहा हो और उसे उतना गौरव न दिया जाता रहा हो / किसी भी कुल को महत्त्व तभी मिलता है जब उसमें नल-जैसा कोई नर-रत्न जन्म ले। नलके कारण ही दमयन्ती उसके कुल का नाम जानने का अनुरोध : कर रही है / वैसे तो उसको पता चल जाता है कि दूत बना यह व्यक्ति साधारण नहीं है, किसी महान् उच्च कुल का है। यहाँ कवि ने ऐसी द्विमुखी भाषा