________________ नेपधीयचरिते अपनी बुद्वि से अच्छी तरह सोच-विचार कर चार देवताओं में से एक को घर ले। वह उनका ऐसा संदेशवाहक है, जिसके पास लिखित पत्र कोई नहीं है, केवल उसकी जिह्वा-वाणी ही पत्र है अथवा वह स्वयं ही लंबा-चौड़ा जंगम पत्र है। यहाँ जिह्वा-तल पर पत्रत्वारोप होने से रूपक है। 'रसा' 'रस' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। इस श्लोक में कवि ने पुष्पिताग्रा वृत्त प्रयुक्त किया है, जिसका लक्षण इस प्रकार है-'अयुजि नयुगरेफतो यकारो युजि तु नजी जरगाश्च पुष्पिताग्रा' अर्थात् यह अर्धसम वृत्त है, जिसमें प्रथम तृतीय पादों में न, न, र, य और द्वितीय-चतुर्थ पादों में न, ज, ज, र, ग होते हैं। आनन्दयेन्द्रमथ मन्मथमग्नमग्नि केलीभिरुद्धर तनूदरि ! नूतनाभिः / आसादयोदितदयं शमने मनो वा नो वा यदीत्थमथ तद्वरुणं वृणीथाः / 108 / ___ अन्वयः-हे तनूदरि ! इन्द्रम् आनन्दय; अथ नूतनाभिः केलीभिः मन्मथमग्नम् अग्निम् उद्धर, वा उदितदयम् मनः शमने आसादय, वा यदि इत्थम् नो, तत् अथ वरुणम् वृणीथाः / टीका-तनु कृशम् उवरं मध्यम् ( कर्मधा० ) यस्याः तत्सम्बुद्धी (ब० वी० ) इन्द्रम् शक्रम् आनन्दय वरणं कृत्वा अनन्दितं कुरु; अथ अथवा नूतनाभिः नवीनाभिः केलीभिः विलासक्रीडाभिः मन्मथे कामे कामपीडायामित्यर्थः मग्नम् / डितम् अग्निम् उद्धर कालवेदनातः तस्योद्धारं कुरु; वा अथवा उदिता प्रादुर्भूता दया करुणा यस्मिन् तथाभूतम् (ब० वी० ) करुणाद्र मनः चित्तम् शमने यमे आसादय प्रापय निवेशयेत्यर्थः, वा अथवा इत्थम् एवं नो न अर्थात् इन्द्रादीन् न वृणुषे चेत् तत् तहि अथ वरुणं वृणीथाः वृणीष्व // 108 // ___ व्याकरण-आनन्दय आ + नन्द + णिच + लोट / नूतनाभिः नवा इति नव + तनप् नव को नूआदेश / मन्मथः मध्नातीति /मथ् + अच् ( कर्तरि ) मनसः मथ इति (पृषोदरादित्वात् साधुः, ) इत्थम् इदम् + थम् (प्रकार वचने)। अनुवाद-हे कृशाङ्गी ( वरण करके ) इन्द्र को आनन्द पहुंचाओ, अथवा काम केलियों द्वारा काम ( वेदना ) में डूबे पड़े अग्नि का उद्धार करो अथबा दया द्रवित मन यम पर लगाओ अथबा यदि ऐसा नहीं तो वरुण का वरण कर लो। टिप्पणी-चारों में से किसी एक के वरण करने पर ही मेरा, दौत्य-कर्म