________________ 352 नैषधीयचरिते टिप्पणी-अग्निदेव ने काम द्वारा जलाई जा रही अपनी छाती के ऊपर ठंडक लाने के लिए कमल का नया पत्ता धरा हुआ था, जिसके साथ 2 शैवाल लता भी थी। शैवाल गहरा हरा अर्थात् काला-काला-सा होता है और नया पत्ता लाल होता है, इसलिए लाल पत्ता कामाग्नि की लाल लपट के समान और सेवार काला धुआँ-जैसा दीख रहा था। इसपर कवि कल्पना कर रहा है कि जैसे अग्निदेव के हृदय में धुआँ साथ लिए कामाग्नि की लपटें हों। इस तरह यहाँ उत्प्रेक्षा है। वक्ष पर इन्धनत्वारोप और काम पर अग्नित्वारोप होने से रूपक है / 'शैवल-वल्लि' और 'परम्परेव' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / पुत्री सुहृद्येन सरोरुहाणां यत्प्रेयसी चन्दनवासिता दिक् / धैर्य विभुः सोऽपि तवैव हेतोः स्मरप्रतापज्वलने जुहाव / / 77 / / अन्वयः-सरोरुहाणाम् सुहृत् येन पुत्री चन्दन वासिता दिक् ( च ) यत्प्रेयसी सः अपि विभुः तव एव स्मरप्रतापज्वलने धैर्यम् जुहाव / टीका-सरोरुहाणाम् कमलानां सुहृद् सखा ( सूर्यः इत्यर्थः ) येन पुत्री पुत्रवान् अस्ति अर्थात् सूर्यपुत्रः, चन्दनः चन्दनवृक्षः वासिता सुगन्धिता दिक् दिशा दक्षिणदिशेत्यर्थः च यस्य प्रेयसी प्रियतमा (10 तत्पु० ) अस्तीति शेषः स अपि विभुः प्रभुः यमः इत्यर्थः तव एव हेतोः कारणात् स्मरेण कामेन यः प्रतापः (तृ० तत्पु० ) प्रकृष्टः तापः ( प्रादि तत्पु० ) कामजनितमहासंतापः इत्यर्थः एव ज्वलन: अनल: ( कर्मधा० ) तस्मिन् धैर्यम् मनोबलम् जुहाव हुतवान् / त्वाम् लक्ष्यीकृत्य विरहे कामो दक्षिण दिशाधिपति यममपि धैर्यात्प्रच्याव्य व्यथयतीति भावः // 77 // व्याकरण-सरोव्हाणाम् सरसि रोहन्तीति सरस् + /रुह् + कः / पुत्री पुत्रोऽस्यास्तीति पुत्र + इन् ( मतुबर्थ ) / वासिता/वास + णिच् + क्त (कर्मणि)। प्रेयसी अतिशयेन प्रिया इति प्रिय + ईयसुन् + ङीप् / प्रतापः प्र + /तप् + घम् / ज्वलन: ज्वलतीति //ज्वल + ल्युः ( कर्तरि ) / धैर्यम् धीरस्य भाव इति धीर + प्यन् / जुहाव हु + लिट् / अनुवाद-"कमलों का सखा ( सूर्य ) जिससे पुत्रवान् है, तथा चन्दन से महकी हुई दिशा ( दक्षिण ) जिसकी प्रेयसी है, ऐसा वह सर्व-समर्थ ( यम) भी तुम्हारे ही कारण काम-जनित महान् ताप रूपी अग्नि में धैर्य की आहुति दे बैठा है" // 77 //