________________ अष्टमः सर्गः अनुवाद -"हे तरुणी! तुम्हारे कारण कामदेव के बाणों से तंग किया जा रहा यह ( अग्नि ) पूजकों द्वारा चढ़ाये जाने वाले फूल से भी भय खा रहा है" // 75 // टिप्पणी-काम अग्नि को बहुत सता रहा है। पूजा में अपने प्रति चढ़ाये फूलों से वह डरता है कि कहीं काम के बाण न हों। विद्याधर यहाँ अतिशयोक्ति कह रहे हैं / सम्भवतः वे चढ़ रहे फूलों और काम-शरों में अभेदाध्यवसाय मान रहे हों। हमारे विचार से उत्प्रेक्षा है जो ‘मन्ये' शब्द द्वारा वाच्य है / 'कुसुमा' 'कुसुम' 'मान' 'माना' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। स्मरेन्धने वक्षसि तेन दत्ता संवर्तिका शैवलवल्लिचित्रा। चकास्ति चेतोभवपावकस्य धूमाविला कीलपरम्परेव / / 76 / / अन्वयः-...तेन स्मरेन्धने वक्षसि दत्ता शैवल वल्लि चित्रा संवर्तिका चेतोभव.. पावकस्य घूमाविला कीलपरम्परा इव रराज / टीका-तेन अग्निना स्मरस्य कामस्य इन्धने दाह्यकाष्ठरूपे वक्षसि निजवक्षःस्थले दत्ता तापोपशमनार्थं निहिता शैवलस्य शैवालस्य वल्लिः लता ( 10 तत्पु० ) तया चित्रा विविधवर्णा ( तृ० तत्पु० ) संवतिका कमलस्य नवदलम् ( 'संवर्तिका नवदलम्' इत्यमरः ) चेतसो भवतीति तथोक्तः ( उपपद तत्पु० ) कामः एव पावकः वह्निः तस्य ( कर्मधा० ) धूमेन आविला मलिना ( 40 तत्पु०) कोलस्य ज्वालायाः ('वहद्वयोज्ालकीलो' इत्यमरः ) परम्परा आवलिः (10 तत्पु० ) इव रराज शुशुभे। तापशान्त्यर्थ हृदि स्थापितं शैवालवल्लीसहितं कमलिन्याः नवदलं प्रज्वलतः कामानलस्य धूम-मिलितः ज्वालाराशिरिव प्रतीयते स्मेति भावः // .76 // व्याकरण-इन्धनम् इध्यतेऽनेनेति इन्ध + ल्युट ( करणे) / चेतोभव: चेतस् + /भू + अप् ( यपादाने ) / परम्परा परम् पिपर्तीति परम् + + अच् + टाप् ( अलुक् समास ) / अनुवाद-"उस ( अग्निदेव ) द्वारा काम के इन्धन-रूप (निज ) वक्षःस्थल पर रखा हुआ सेवार-लता से रंगविरंगा बना कमल का नया पत्ता ऐसा शोभित हो रहा था मानो धुएँ ( के मिलने ) से काला पड़ा कामाग्नि का ज्वाला-समूह हो" // 76 //