________________ नैषधीयचरिते प्रिया का प्रियवचन-श्रवण होने से काव्यलिङ्ग लिख रहे हैं, जो ठीक ही है। 'प्रियं' 'प्रिया' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास हैं। पौरस्त्यशेलं जनतोपमीता गृह्णन् यथाह्नःपतिरध्यपूजाम् / तथातिथेयोमथ संप्रतोच्छन् प्रियापितामासनमाससाद // 52 // अन्वयः-अथ अह्नः पतिः जनतोपनीताम् अर्घ्यपूजाम् गृह्णन् यथा पौरस्त्यशैलम् ( आसादयति ), तथा प्रियापिताम् आतिथेयीम् सम्प्रतीच्छन् आसनम् आससाद // 52 // टीका-मथ अनन्तरम् अह्नः दिवसस्य पतिः स्वामी ( 10 तत्पु० ) सूर्य इत्यर्थ; जनानां समूहो जनता तया उपनीताम् उपहृताम् समर्पितामिति यावत् अथिं जलम् अयम् तदेव पूजाम् अर्चनाम् ( कर्मधा० ) गृह्णन् स्वीकुर्वन् यथा पौरस्त्यम् पुरो भवम् प्राच्यमित्यर्थः शैलम् पर्वतम् उदयाचलमिति यावत् आसादयति, तथा प्रियया दमयन्त्या अपिताम् दत्ताम् आतिथेयोम् अतिथिषु साध्वीम् पूजाम् आतिथ्यमित्यिर्थः सम्प्रतीच्छन् प्रतिगृह्णन् नलः आसनम् पीठम् आससाद अधिष्ठितवान् / / 52 // __ व्याकरण--जनता जन + तल ( समूहार्थ में ) / अध्यम् अर्थार्थ जलमितिअर्घ + यत् / पौरस्त्य पुरो भव इति पुरस् + त्यक् / आतिथेयीम् अतिथिषु साधुः इति अतिथि + ढम् ( साध्वर्थे ) + ङोप ( ‘पथ्यतिथि०' 4 / 4 / 104 ) / सम्प्रती. च्छत् सम् + प्रति + /इष् + शतृ / अनुवाद-तदनन्तर जिस प्रकार सूर्य भगवान् जनता द्वारा दिये गये अर्घजर रूप में पूजा प्रहण करते हुए उदयाचल पर विराजमान होते हैं उसी प्रकार प्रिया द्वारा दिये गये अतिथि सत्कार स्वीकार करके नल आसन पर विराज गये // 52 // टिप्पणी-यहाँ पर नल के आसन पर बैठने की तुलना सूर्य से की गई है, अतः उपमालंकार है। 'नतो' 'नीता', 'तथा' 'तिथे' में छेक, 'मास' 'मास' में यमक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। प्रियापितमासनम् '-नारायण ने यहाँ आसन से दमयन्ती का छोड़ा हुआ अपना आसन लिया है अर्थात् नल दमयन्ती के खाली किये हुए उसके आसन पर विराज गये किन्तु मल्लिनाथ ने 'अस्या वयस्यासनम्' पाठ दिया है अर्थात् नल दमयन्ती के आसन पर नहीं बैठे प्रत्युत उसकी सखी के