________________ अष्टमः सगः 325 इस तरह तो नलनियों का हमेशा के लिए सफाया ही समझो। अतः वसन्त को छोड़ नलिनियाँ यदि शिशिर में खिलें तो हिम से पुष्प-पत्र ही विनष्ट होंगे, जड़ तो बची रहेगी / जड़ बची रहने से नलिनियाँ फिर भी पनप सकती हैं। विद्याधर के अनुसार 'अत्रातिशयोक्ति-काव्यलिङ्गमलङ्कारः'। हमारे विचार से यहाँ नलिनियों के चेतनीकरण में समासोक्ति है। 'मधौ-मधौ' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। दमस्वसः ! सेयमुपैति तृष्णा हरेजगत्यग्रिमलेख्यलक्ष्मीम् / दशां यदब्धिस्तव नाम दृष्टित्रिभागलोभार्तिमसौ बिभर्ति // 70 // अन्वय:-हे दमस्वसः ! सा इयम् हरेः तृष्णा जगति अग्रिम-लेख्य-लक्ष्मीम् उपैति. यत् दृशाम् अब्धिः असौ तव दृष्टि ''भातिम् बिभर्ति नाम / टोका-दमस्य स्वसा भगिनी तत्सम्बुद्धौ (प० तत्पु० ) हे दमस्वस: ! दमयन्ति / सा प्रसिद्धा इयम् एषा हरेः इन्द्रस्य तृष्णा आशा जगति लोकत्रये अग्रिमस्य आदिमस्य लेख्यस्य गणनीयस्य ( कर्मधा० ) लक्ष्मीम् शोभाम् उपैति प्राप्नोति अग्रगण्यास्तीत्यर्थः यत् दृशाम् नयनानाम् अब्धिः समुद्रः सहस्रनेत्रत्वात् नेत्र समुद्रसदृशः इत्यर्थः असौ इन्द्रः तव ते दृष्टे: दृशः त्रिभाग: त्रिशब्दोऽत्र त्रिदशादिशब्दवत् पूरणार्थे ज्ञेयः, तृतीयो भागः इत्यर्थः कटाक्षमात्रमिति यावत् (10 तत्पु० ) तस्य लोभः अभिलाषः ( 10 तत्पु० ) तेन अतिम् पीडाम् तजनितव्यथामिति यावत् ( तृ० तत्पु० ) बिति धत्त नाम खलु / सर्व तृष्णासु प्रथमम् उल्लेखनीया इन्द्रस्येयमेव तृष्णास्ति यत् स स्वयं सहस्रदृष्टिकोऽपि सन् तव दृष्टे: अनुरागपूर्ण तृतीयांशमेव लभेतेति भावः / / 70 // ___ व्याकरण-तृष्णा तृष् + न + टाप कित्व / अग्रिम-अग्रे भवमिति अग्र + डिमच् / लेख्य लेखितुम् योग्यमिति/लिख + ण्यत् / अब्धिः आपो धीयन्तेऽत्रेति अप् + /धा + कि ( अधिकरणे ) / त्रिभाग यहाँ व्युत्पत्ति त्रिषु भागः यों स० तत्पु० करके तीनों में से एक भाग अर्थात् तृतीय भाग अर्थ करें। ___ अनुवाद-“हे दम की बहिन ! इन्द्र की यह प्रसिद्ध उत्कट अभिलाषा जगत् में सब से आगे उल्लेखनीय ( वस्तु ) की शोभा प्राप्त कर रही है, क्योंकि नयनों का ( स्वयं ) समुद्र-रूप वह तुम्हारे नयन के तृतीय भाग ( प्राप्त करने ) के लोभ की पीड़ा झेल रहा है" // 70 //