________________ 310 नषधीयचरिते , एक से अधिक बार आवृत्ति होने पर छेक न होकर वृत्त्यनुप्रास ही होगा। पञ्चेषुणा-कामदेव के पांच वाणों के सम्बन्ध में पीछे श्लोक 4 देखिये। तेषामिदानी किल केवलं सा हृदि त्वदाशा विलसत्यजस्रम् / आशास्तु नासाद्य तनूरुदाराः पूर्वादयः पूर्ववदात्मदाराः // 60 // अन्वयः-इदानीम् सा त्वदाशा तेषाम् हृदि केवलम् अजस्रम् विलसति किल उदाराः तनूः आसाद्य आत्म-दाराः पूर्वादयः आशाः तु ( हृदि ) पूर्ववत् न विलसन्ति / टीका-इदानीम् सम्प्रति तव तारुण्यावस्थायामिति यावत सा प्रसिद्धा तव आशा तृष्णा त्वत्प्राप्त्यभिलाष इत्यर्थः अथ च दिशा (10 तत्पु० ) ( 'आशा दिगतितृष्णयोः' इत्यमरः) तेषाम् इन्द्रादीनां लोकपालानाम् हृदि हृदये केवलम् एकमात्रम् अजस्त्रम् निरन्तरम् यथा स्यात्तथा विलसति स्फुरति किल खलु, उदाराः महतीः सुन्दरीश्च ('उदारो महति ख्याते दक्षिणे दानशौण्डके' इत्यमरः) तनूः शरीराणि आसाद्य प्राप्य आत्मनः स्वस्य वारा: भार्याः पूर्वा प्राची आदी यासां तथाभूताः (ब० वी० ) आशाः तु पुनः अद्य तव यौवनारोहणसमये हृदि पूर्ववत् पूर्वमिव न विलसन्ति स्फुरन्ति / पूर्वाद्याः आशाः ( दिशः ) विहाय सम्प्रति देवाः केवलं त्वत्प्राप्त्याशानिबद्धाः सन्तीति भावः // 60 // व्याकरण-इदानीम् इदम् + दानीम् / बाराः यास्कानुसार दारयन्तीति VE + णिच् + अच ( कर्तरि ) / ध्यान रहे कि दार शब्द नित्य बहुवचनान्त और पुल्लिग रहता है। अनुवाद-"इस समय वास्तव में तुम्हारी (प्राप्ति की ) आशा ( अभिलाषा, दिशा) ही एकमात्र उन ( देवताओं) के हृदय में उजागर हो रही है। उनकी उदार ( महान; अनुकूल) शरीर प्राप्त किये निज पत्नियां-पूर्व आदि आशायें-(दिशायें ) तो अब हृदय में पहले की तरह उजागर नहीं होती" // 60 // टिप्पणी-भाव यह है कि इस समय तुम ही इन्द्रादि की एकमात्र आशा हो, पूर्व आदि माशाओं को वे छोड़ बैठे हैं। वे बड़ी हो बैठी हैं और पहले की-जैसी अपनी रोचकता खो गई हैं। नयी तरुणी पत्नी-रूप में मिलने पर