________________ अष्टमः सर्गः 311 आसन पर बैठे। वे कारण यह देते हैं-'दूत्यावस्थायामनौचित्यात्' अर्थात् दूत का मालकिन के आसन पर बैठना सर्वथा अनुचित है, अनधिकार चेष्टा है / अयोधि तीर्थमनोभवाभ्यां तामेव भैमीमवलम्ब्य भूमिम् / आह स्म यत्र स्मरचापमन्तश्छिन्न भ्रुवौ तज्जयभङ्गवार्ताम् // 53 // अन्वयः-तद्धैर्य-मनोभवाभ्याम् ताम् एव भूमिम् अवलम्ब्य अयोधि, यत्र अन्तः छिन्नम् भ्रवौ स्मरचापम् तज्जयभङ्गवार्ताम् आह स्म / ___टीका-तस्य नलस्य धैर्य-मनोभवाभ्याम् (10 तत्पु० ) धैर्यम् धृतिश्च मनोभवः कामश्च ताभ्यात् ( द्वन्द्व ) ताम् दमयन्तीम् एव भूमिम् रण-स्थलीम् अवलम्ब्य आश्रित्य दमयन्ती-रूपयुद्धस्थलेः इत्यर्थः अयोधि युद्धं कृतम्, यत्र भूमौ अन्तः मध्ये छिन्नम् त्रुटितम् भ्रवौ एव स्मरस्य कामस्य चापम् धनुः तयोः धैर्यकामयोः यथाक्रमम् जयभङ्गवार्ताम् (10 तत्पु० ) जयश्च भङ्गः पराजयश्चेति ( द्वन्द्व ) तयोः वार्ताम् समाचारम् (10 तत्पु० ) आह स्म कथयति स्म भ्रूरूपधनुषो मध्ये द्विधा खण्डितत्वेन कामस्य पराजयः धर्यस्य च विजयो ज्ञायते इति भावः / / 52 // ___ व्याकरण-धैर्यम् धीरस्य भाव इति धीर + व्यञ् / मनोभवः मनसो भवतीति मनस् + /भू + अप् ( अपादाने ) / अयोधि/युध् + लुङ् ( भाववाच्य ) आह स्म / + लट ब्र को विकल्प से आह आदेश और लिट के अर्थ में स्म / अनुवाद-उस ( नल ) के धैर्य और काम उस ( दमयन्ती ) को रणस्थल बनाकर लड़ पड़े, जहाँ बीच में टूटे पड़े ( दमयन्ती के ) भ्रू-रूप काम के धनुष ने ( क्रमशः उन दोनों के ) जय-पराजय की बात कह दी / / 53 / / टिप्पणी- यहाँ कवि नल के हृदय में उठे अन्तर्भावों के द्वन्द्व' का वर्णन कर रहा है। एक ओर उनका धैर्य डटा हुआ है यह समझा रहा है कि खबरदार तुम दूत हो, प्रेमी नहीं, दूत्यकर्तव्य से मत विचलित होना, दूसरी ओर दमयन्ती का सौन्दर्य देख. मधुर वचन सुन काम उन्हें भड़का रहा है कि भूल जाओ कि तुम दूत हो / प्रेयसी मिल गई, उड़ाओ मौज / इस अन्तःसंघर्ष में अन्ततोगत्वा धैर्य जीत गया और काम हार गया। दमयन्ती की भौहें कामदेव का धनुष है। भौंहें वीच में टूटी हुई हैं, एकसार मिली नहीं हैं। इसलिए जिस योधा का धनुष बीच में दो-टूक हो जाता है, वह हारा ही समझा जाता है / भाव यह