________________ अष्टमः सर्गः अपि अक्रमम् न क्रमः पौर्वापर्य यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात्तथा ( नन ब० वी० ) क्रमेण विना युगपदेवेत्यर्थः विक्रमः शौर्यम्, मनोबलम् उत्साह इति यावत् शक्तिः शरीरबलं चेति ( द्वन्द्व ) तयोः साम्यात् तुल्यत्वात् ( 10 तत्पु० ) यत् यस्मात् उपाचरत ताभ्यां सह व्यवाहरत्, तत् तस्मात् अमुष्य अस्य कामदेवस्य अर्धं च अर्ध च अधैि ( द्वन्द्व ) ताभ्यां विभाग: विभजनम् (तृ० तत्पु० ) तम् भजन्तीति तथोक्तः ( उपपद तत्पु० ) न अर्धाधु० इति अनधि / नत्र तत्पु० ) द्वयोः भागयोः समत्वेन विभक्तुम् अशक्यः पञ्चसंख्यायाः विषमत्वात् शरैः बाणः वैमत्यम् असंमतिम् वैषम्यमिति यावत् कथम् कस्मात् न चक्र कृतम् ? महदाश्वयंमेतत् / कामेन समकालमेव उभयस्मिन् पञ्च बाणाः समानरूपेण प्रहृताः एतत् न संभवतीति भावः // 104 // व्याकरण--विक्रम वि + क्रम् + अच् / साम्यात् समस्य भाव इति सम + ष्यन / भाग्भिः भज् + क्विप् ( कर्तरि ) / वैमत्यम् विमत + ष्यन् / अनुवाद - कामदेव ने दोनों ( नल-दमयन्ती ) पर एक साथ ही एक-जैसे उत्साह और शक्ति के साथ जो प्रहार किया, उससे इस ( काम ) के बाणों ने ( अपने प्रभाव में ) वैषम्य क्यों नहीं किया ? / / 4 // टिप्पणी-कामदेव को पंचबाण कहते हैं, क्योंकि उसके पाँच बाण हुआ करते हैं / उसने एकसाथ नल-दमयन्ती पर पांचों बाण छोड़ डाले। प्रश्न उठता है कि क्या प्रत्येक पर पाँच-पाँच बाण छोड़े? तब तो बाण पाँच नहीं, दस बनने चाहिए। यदि बाण पाँच ही हैं, तो पाँच दो बराबर भागों में नहीं बाँटे जा सकते हैं। इसलिए एक पर तीन और एक पर दो बाण फेंके होंगे / ऐसी स्थिति में युगल पर एक-जैसा ही प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। जिसपर तीन वाण पड़े, उसपर अधिक प्रभाव और जिसपर दो पड़े, उसपर कम प्रभाव पड़ना चाहिए, लेकिन दोनो पर काम-प्रभाव एक ही समय में एक-सा ही पड़ा, ऐसा क्यों हुआ - समझ में नहीं आता है। विद्याधर यहाँ अतिशयोक्ति कह रहे हैं, किन्तु मल्लिनाथ के शब्दों में-'अत्र विषमैयुगपदुभयत्र समप्रहारविरोधस्य स्मरमहिम्ना समाधानाद् विरोधाभासालङ्कारः'। 'क्रम' 'क्रम' 'अधि' तथा 'भागभाग्भिः ' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / पञ्चबाण:-'कामदेव के पाँच बाण ये हैं - अरविंदमशोकं च चूतं च नवमल्लिका / नीलोत्पलं च पञ्चते पञ्चबाणस्य सायकाः'N