________________ अष्टमः सर्गः 257 इसी तरह नल ने दमयन्ती देखी तो मन चंचल और उसे पाने को अधीर हो उठा, किन्तु जब सोचा कि अरे, इसे चाहने वाला में कोन होता है, मैं तो प्रतिनायक इन्द्र का दूत हूँ, जो इसका चाहने वाला है, यह सोचते ही नल की सारी उत्सुकता उदासी में बदल गई / इस तरह यहाँ भी चाञ्चल्य और विषाद नामक भावों की सन्धि हो रही है / इसलिए दो भाव-सन्धियों की संसृष्टि है / 'क्षणं' 'क्षणं' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / कयाचिदालोक्य नलं ललज्जे कयापि तद्भासि हृदा ममज्जे / तं कापि कन्या स्मरमेव मेने भेजे मनोभूवशभूयमन्या // 6 // अन्वयः- कयाचित् ( बालया ) नलम् आलोक्य ललज्जे; कया अपि तद्भासि हृदा ममज्जे, का अपि कन्या तम् स्मरम् एव मेने, अन्या मनोभूवशभूयम् भेजे। टीका-कयाचित् दमयन्तीसखीनां मध्ये कया अपि नलम् आलोक्य दृष्ट्वा ललज्जे शृङ्गारभावोदयात् लज्जितया बभूवे, फया अपि सख्या तस्य नलस्य भासि सौन्दर्यच्छटायां हृदा हृदयेन गमज्जे मग्नया बभूवे, तस्यालौकिकलावग्यं विलोक्य कामोद्र के तन्मयया भूतमिति भावः, का अपि कन्या बाला तम् नलम् कामोद्दीपकत्वात् स्मरम् कामम् एव मेने अमन्यत, अन्या सखी मनोभू : कामः तस्य वशभूयम् वशत्वम् कामाधीनत्वमिति यावत् ( 10 तत्पु० ) भेजे प्राप्तवती नलेऽनुरक्ता जातेत्यर्थः // 6 // व्याकरण-लज्जे Vलज्ज् + लिट् ( भाववाच्य ) / भासि./भास् / क्विप ( भावे ) स० / ममज्जे / मस्ज् + लिट (भाववाच्य ) / मनोभूः मनसो भवतीति मनस् + /भू + क्विप् ( कर्तरि ) / चशभूयम् घशस्य भाव इति वश + Vभू + क्यप् ( 'भुवो भावे' 3 / 1 / 107 ) / ___अनुवाद--कोई ( सखी ) नल को देखकर लजा गई; कोई हृदय से उनकी लावण्य-छटा में मग्न हो बैठी; कोई कुमारी उन्हें कामदेव ही मान गई; ( कोई ) दूशरी कामाधीन हो गई // 6 // टिप्पणी-यहाँ लज्जा औत्सुक्य आदि भावों के उदय होने से भावोदया. लंकार है ‘कया' 'कया' में छेक, 'ललज्जे' 'ममज्जे' में पादान्तगत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है।