________________ 272 नैषधीयचरिते मधुपर्केण मधुपर्कदानद्वारा तृप्तिः सन्तुष्टिः (तृ० तत्पु० ) प्रियाणि श्रुतिसुखावहानि मधुराणीति यावत् यानि अक्षराणि वचनानि ( कमंधा० ) तेषाम् आली पङ्क्तिः तस्याः यो रस: माधुर्यम् आनन्द इत्यर्थः तस्य धारया संतत्या ( सर्वत्र ष० तत्पु० ) अपि विधेया अनुष्ठेया। प्राधुणिकाय पादोदकम् देयम्, तदभावे प्रणामस्तु कर्तव्य एव, एवमेव तदर्थ मधुपर्क आनेयो भवति, स न स्यात् चेत् तर्हि मधुरवचनैस्तु सत्कर्तव्य एवेति भावः // 20 // व्याकरण-आचार: आ/चर + घन ( भावे ) / आचारविद् आचार + विद् + क्विप ( कर्तरि ) / पाद्यम् पादार्थम् उदकमिति पाद + यत् / वैधी विधेः इयमिति विधि + अण + डीप / सम्पाद्यम् सम् + पद् + णिच् + ण्यत् / मधुपर्कः मधू पृच्यते भित्री क्रियतेऽत्रेति मधु + पृच् + घन ( अधिकरणे)। अनुवाद-"शिष्टाचार वेत्ता को चाहिए कि वह ( पैरों में ) सिर नवाकर चूड़ामणि की ( जल की-सी स्वच्छ ) छटा तक से भी अतिथियों के लिए पादोदक दे देवे, विधि-विहित मधुपर्क द्वारा तृप्ति प्रिय वचनों की मधुर-धारा तक से भी कर दे" // 20 // पादोदक देकर मधुपर्क से सम्मानित करते हैं / दमयन्ती के पास सहसा आये हुए इस अतिथि हेतु उस समय न पादोदक है, न मधुपर्क / किन्तु सिर झुकाकर पादों में पड़ने वाली चूड़ामणि की स्वच्छ किरणों को वह पादोदक का काम करने देना चाह रही है। मधुपर्क का प्रदान भी वह मधुर वचनों के रूप में करने जा रही है। विद्याधर यहाँ कायलिंग कह रहे हैं। पाचं' 'पाय' 'पंधी' "विधि' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। मधुपर्क-पहले समय में अतिथि को मधुपर्क द्वारा सत्कृत किया जाता था। अब यह प्रथा विवाह करने आये हुए वर तक ही सीमित हो गई है। इसे बनाने में पाँच वस्तुओं का प्रयोग होता है'दधि सर्पिजलं क्षौद्रं सिता चैतेश्च पञ्चभिः / प्रोच्यते मधुपर्कः। अर्थात् दही, घी, जल; शहद और शक्कर / स्वात्मापि शीलेन तणं विधेयं देया विहायासनभूनिजापि / आनन्दबाष्पैरपि कल्प्यमम्मः पृच्छा विधेया मधुभिर्वचोभिः // 21 / / * अन्वया- (आचारविदा ) शीलेन स्वात्मा अपि तृणम् विधेयम्; निजा