________________ नैषधीयचरिते अन्वय--(हे दमयन्ति ) दैवी लिपिः भुवि न सुपठा' इति तुभ्यम् प्रेरित प्रसादम् रचय / टोका- हे दमयन्ति ) देवी देव-सम्बन्धिनी लिपि: लेखाक्षराणि भुवि भूलोके न सुपठा सुखेन पठितुं न शक्या अपाठयेत्यर्थः इति हेतोः तुभ्यम् तब कृते प्रेरितम् प्रेषितम् यत् वाचिकम् संदेशः ( कर्मघा० ) येन तथाभूतस्य (व० वी०) 'संदेश-बाग् वाचिकं स्यात्' इत्यमरः इन्द्रस्य देवराजस्य दूत्याम् संदेशवाहिन्याम् मयि विज्ञापयन्त्याम् विज्ञापनां कुर्बत्याम् तत्सन्देशं निवेदयन्त्यामिति यावत् त्वम् अवधानम् ध्यानम् तस्य दानम् प्रदानम् (10 तत्पु० ) एव प्रसादं कृपाम् रचय कुरु / कृपया ध्यानं दत्त्वा मत्सकाशात् तुभ्यं प्रेषितम् इन्द्रसंदेशं शृणु इति भावः // 77 // व्याकरण-देवी-देवानामियमिति देव + अण् + डीप लिपिः /लिप् + इक् / सुपठा सु/पठ् + खल् / वाचिकम् व्याहृता वाक् इति वाक् + ठक् ( स्वार्थे ) ( 'वाचो व्याहृतार्थायाम्' 5 / 4 / 35), किन्तु ध्यान रहे कि 'स्वार्थिकाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्तन्ते वा' इस नियम से नपुंसक बन जाते है जैसा सेना एव सैन्यम् माला एव माल्यम् इत्यादि / विज्ञापयन्त्याम् वि +/ ज्ञा + णिच् + शतृ डीप् सप्तमी / अवधानम् अव + Vधा + ल्युट ( भावे ) / __ अनुवाद-( हे दमयन्ती) देवताओं की लिपि भूलोक में पढ़ी नहीं जा सकती है इस कारण तुम्हारे लिए ( मौखिक ) संदेश भेजे हुए इन्द्र की ( मुझ ) दूती के निवेदन के प्रति ध्यान देने की कृपा कीजिये // 77 // __टिप्पणी-भूलोक में देवताओं का लेख यदि पढ़ा जा सकता तो इन्द्र स्वयं पत्र लिखकर तुम्हें अपना सन्देश भेजते / किन्तु ऐसा न हो सकने के कारण उन्होंने मेरे द्वारा मौखिक सन्देश ही भेजा है। हमारी समझ में नहीं आया कि जब देवताओं की लिपि ही भूलोक वासियों के पढ़ने में नहीं आ सकती, तो उनकी बोली कैसे समझ में आ गई। यदि सर्व शक्ति सम्पन्न होने से मानुषी वाणी बोल सकते हैं तो मानुषी लिपि भी लिख सकते हैं। कारण बताने से काव्यलिंग है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है / सलीलमालिङ्गनयोपपीडमनामयं पृच्छति वासवस्त्वाम् / शेषस्त्वदाश्लेषकथापनिद्रैस्तद्रोमभिः संदिदिशे भवत्यै / / 78 //