________________ 194 नैषधीयचरिते अर्धम् अर्धम् अधिभागम् वध्रतुः दधतु: तस्य अर्धस्य कर्णयोः श्रोत्रयोः अन्तः / मध्ये (10 तत्पु० ) उत्कीर्णा उल्लिखिता जनितेत्यर्थः गभीरा निम्ना रेखा लेखा ( उभयत्र ) ( कर्मचा० ) यस्य तथाभूतः ( ब० बी० ) नव नवसंख्या-बोधकः अङ्कः (मध्यमपदलोपी समास) नवा अभिनवो अपूर्वेति यावत् संख्या एव न किम् ? अपितु नवा संख्या एवेति काकुः / अष्टादश-विद्याः द्वयोः भागयोः विभज्य प्रत्येक कर्णन गुरुमुखाद् दमयन्ती नव नव विद्याः अग्रहीदिति भावः // 63 // ___ व्याकरण-अतिः श्रूयतेऽनयेति Vश्रु+ क्तिन् ( करणे ) / दध्रतुः धु + लिट् द्वि० व०। उत्कीर्ण-उत् + V कृ + क्तः ईर् आदेश, त को न, न को ण / - अनुवाद-इस ( दमयन्ती) के कान अठारह विद्याओं का ( दो में) विभाग करके जो आधा-आधा रख रहे हैं, उसका कानों के मध्य उकेरी गहरी रेखा वाला नौका अंक अपूर्व संख्या ही नहीं हैं क्या? // 63 // टिप्पणी-कानों की बाहरी बनावट देवनागरी में नौ के अंक की तरह है। इस पर कवि कल्पना कर रहा है कि अठारह विद्याओं में से नौ-नौ को एक एक कान से दमयन्ती ने गुरु मुख से सुन रखा है। अठारह विद्याओं के सम्बन्ध में हम पीछे सगं 1 और श्लोक 5 में विस्तार से स्पष्ट कर चुके हैं कि वे ये हैं:चार वेद, छः अङ्ग, मीमांसा. न्याय, पुराण,धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धवं, और अर्थशास्त्र / यहाँ कानों की अर्धचन्द्राकार बनावट पर कवि की नौ के अंक की कल्पना की जाने से उत्प्रेक्षा है / 'नवा' नवा' में यमक, अन्यत्र वृत्यनुप्रास है। मन्येऽमुना कर्णलतामयेन पाशद्वयेन च्छिदुरेतरेण / एकाकिपाशं वरुणं विजिग्येऽनङ्गीकृतायासतती रतीशः। 64 // अन्वयः-रताशः अमुना कर्णलतामयेन छिदुरेतरेण पाश-द्वयेन अनङ्गीकृतायासततिः ( सन् ) एकाकिपाशम् वरुणम् विजिग्ये मन्ये / टोका-रत्याः ईशः भर्ता कामः ( 10 तत्पु० ) अमुना एतेन प्रत्यक्षं दृश्यमानेन कर्णौ श्रोत्रे लते वल्ल्यौ ( कर्मधा० ) एवेति तेन कर्णलतामयेन छिदुरात भगुरात् इतरेण भिन्नेन (पं० तत्पु० ) अच्छिदुरेण दृढतरेणेति यावत् पाशयोः