________________ सप्तमः सर्गः 227 रोप, नितम्ब पर चक्रत्वारोप, गुण पर गुणत्वारोप और लावण्य पर जलत्वारोप होने से समस्तवस्तुविषयक रूपक बनते-बनते रह गया है, क्योंकि यहाँ मिट्टी की कमी रह गयी है। रूपक के साथ गुण शब्द में श्लेष और शंके-शब्द वाच्य उत्प्रेक्षा भी है। शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। अङ्गेन केनापि विजेतुमस्या ! गवेष्यते किं चलपत्रपत्रम् / न चेद्विशेषादितरच्छदेभ्यस्तस्यास्तु कम्पस्तु कुतो भयेन // 91 // अन्वयः-अस्याः केन अपि अङ्गेन चलपत्र-पत्रम् विजेतुम् गवेष्यते किम् ? न चेत् इतरच्छदेभ्यः विशेषात् तस्य कम्पः कुतः तु भयेन अस्तु / टीका-अस्याः भैम्याः केन अपि अनिर्वचनीयेन अतिसुन्दरेणेति यावत् अथ च अश्लीलत्वात् वक्तुमशक्येन अङ्गेन वरांगेन, स्मरमन्दिरेण योनिसंज्ञकेन चलपत्रस्य अश्वत्थस्य पत्रम् दलम् ( 10 तत्पु० ) ( 'बोधिद्रुमश्चलदलः पिप्पलः कुञ्जराशनः' इत्यमरः ) विजेतुम विशेषेण जेतुम् गवेष्यते अन्विष्यते किम् ? अस्याः वराङ्गम् पिप्पलपत्रं पराजेतुम् अन्विष्यतीति भावः / न चेत अन्यथा इतरे च ते छदाः पत्राणि ( कर्मधा० ) तभ्यः तेषामपेक्षयेत्यर्थः ( 'दलं पर्ण छदः पुमान्' इत्यमरः) विशेषात् आधिक्यात् तस्य चलपत्र-पत्रस्य कम्पः कम्पनम् कुतः कस्मात् तु भयेन भीत्या अस्तु भवतु / पिप्पलस्य पत्रम् अन्यवृक्षपत्रापेक्षया अधिकं कम्पते, तत्कारणञ्च तस्मिन् एतस्या वराङ्गपराभवभयमस्तीति भावः // 91 // व्याकरण-गवेष्यते /गवेष + लट् ( कर्मवाच्य ) / छदः छदति, छदयति वेति छद् + अच् ( कर्तरि ) / कुतः भयहेतु में पञ्चम्यर्थक तसिल / अनुवाद-इस ( दमयन्ती ) का कोई अवचनीय अङ्ग परास्त करने हेतु पीपल के पत्ते को खोज रहा है क्या ? नहीं तो अन्य पत्तों की अपेक्षा इस ( पीपल के पत्ते ) को अधिक कम्प किसके डर से होना था ? // 91 // टिप्पणी-कवि दमयन्ती के गुह्यांग का वर्णन कर रहा है, जो पीपल के पत्ते के आकार का है / हम देखते हैं कि पीपल का पत्ता अन्य वृक्षों के पत्तों की अपेक्षा अधिक हिलता है। उसपर कवि की कल्पना यह है कि उसे डर हो रहा है कि दमयन्ती का गुप्तांग मुझे धर दबाने के लिए मेरी खोज में है। इसलिए डर के मारे अधिक काँप रहा है। प्रबल द्वारा दबाये जाने का भय दुर्वल को