________________ 240 नैषधीयचरिते इस ( दमयन्ती ) का पद ( चरण ) की सेविका बनी हुई शोभित हो रही है // 101 // टिप्पणी-दमयन्ती ने स्त्रियोचित सभी गुणों में लक्ष्मी को मात दे दी। हार खाये लक्ष्मी क्रोध के मारे लाल हो उठी। ब्रह्मा के आगे गिड़गिड़ाई कि मुझे दमयन्ती का पद ( स्थान ) दे दीजिए अर्थात् मैं दमयन्ती होऊं, किन्तु भला लक्ष्मी दमयन्ती का पद कैसे प्राप्त कर सकती थी। फिर भी ब्रह्मा ने उसे उसका पद दे ही दिया. लेकिन वह पद था दमयन्ती का चरण, न कि स्थान / लक्ष्मी को ब्रह्मा ठग बैठा / लक्ष्मी ( लाल शोभा) आज दमयन्ती के पद ( चरण ) में वैठी हुई है। भाव यह निकला कि दमयन्ती के लाल-लाल पदों ( चरणों) की शोभा अलौकिक है। कवि-कल्पना होने से उत्प्रेक्षा है। दो विभिन्न श्रियों-लक्ष्मीदेवी और शोभाओं का श्लेषभूलक अभेदाध्यवसाय होने से भेदे अभेदातिशयोक्ति है / 'रुणा' 'रुण' 'पद' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास ह / यानेन तन्व्या जितदन्तिनाथौ पादाब्जराजौ परिशुद्धपार्णी। जाने न शुश्र षयितुं स्वमिच्छू नतेन मूर्ना कतरस्य राज्ञः // 102 / / अन्वयः-यानेन जित-दन्तिनाथौ परिशुद्धपार्णी, तन्व्याः पदाब्जराजी कतरस्य राज्ञः नतेन मूर्ना स्वम् शुश्रूषयितुम् इच्छू ( इति ) न जाने / टीका-यानेन गत्या अथ च अभियानेन जितौ पराभूती दन्तिनाथौ (कर्मधा० ) दन्तिनां हस्तिनां नाथौ पती (10 तत्पु० ) गजराजो अथ च गजारूठ राजी याभ्यां तथाभूती ( व० वी० ) परिशुद्ध: निर्दोषः रमणीय इत्यर्थः पाणिः गुल्फयोः अधोभागी चरणपश्चाद्भागौ इति यावत्, अथ च पाणिग्राहः पृष्ठतः स्थिता सेनेति यावत् ( कर्मधा० ) ययोः तयाभूतौ (ब० वी० ) तन्व्याः कृशाङ्गयाः दमयन्त्याः पदौ पादौ अब्जे कमले इव (उपमित तत्पु०) एव राजानौ भूपी ( कमंधा० ) कतरस्य द्वयोः कस्यैकस्य राज्ञः पतिभूतस्य, अथ च शत्रुभूतस्य भूपालस्य नतेन कोपशान्तये निम्नीभूतेन मर्ना शिरसा स्वम् आत्मानम् शुश्रूषयितुम् शुश्रूषां कारयितुं सेवयितुमिति यावत् इच्छु अभिलाषुको इति न जाने न. वेभि / दमयन्त्या चरणौ सौन्दर्ये कमल-तुल्यौ गतौ च गज-गति-तुल्यौ, भाविनः पतिभूतस्य कस्यापि राज्ञः मूर्ना प्रणयकोपोपशमनार्थ तथैव शुश्रुषितव्यौ यथा प्रबलसेनासहितः कोऽपि बलवत्तरो राजा युद्धे गजारूढस्य शत्रुभूतस्य प्राप्तपराजयस्य राजान्तरख्य मूर्ना शुश्रूषितव्यो भवतीति भावः ! / 102 //