________________ सप्तमः सर्गः अनुसार शुभ लक्षण है। कवि अदृश्यशक्तिसम्पन्न अरुन्धती आदि तेरह देवियों के बाद गिनती में दमयन्ती की चौदहवीं अदृश्यशक्ति-सम्पन्न देवी के रूप में कल्पना कर रहा है। तभी तो उसके गुल्फों में अदृश्यत्व सिद्धि हुई है। जिनराज अपनी सुखावबाधा टीका में दमयन्ती पर कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि की कल्पना कर रहे हैं, क्योंकि लोग कृष्ण चतुर्दशी की रात में अलौकिक सिद्धि हेतु अनुष्ठान किया करते हैं / शास्त्र भी कहता है-'चतुर्दश्यामदृश्यत्वसिद्धिर्भवति'। कल्पना मानने में उत्प्रेक्षा है, किन्तु विद्याधर चतुर्दशीत्व का आरोप मानकर रूपक कहते हैं / 'दशी' 'दृश्य' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / अस्याः पदो चारुतया महान्तावपेक्ष्य सोक्षम्याल्लवभावभाजः। जाता प्रवालस्य महीरुहाणां जानीमहे पल्लवशब्दलब्धिः / / 99 // अन्वयः-चारुतया महान्तो अस्याः पदी अवेक्ष्य सौक्ष्म्यात् लवभावभाजः महीरुहाणाम् प्रवालस्य पल्लव-शब्दलब्धिः जाता ( इति ) जानोमहे / टोका-चारुतया सौन्दर्येण महान्ती उत्तमी अस्याः दमयन्त्या पदो पादौ अवेक्ष्य विलोक्य सौक्ष्न्यात् तस्याः सुन्दरपादापेक्षया स्वस्य अत्यल्पसुन्दरत्वादित्यर्थः लवस्य अल्पांशस्य भावः (10 तत्पु० ) अल्पत्वमित्यर्थः भजतीति तथोक्तस्य ( उपपद तत्पु० ) महीरहाणाम् मह्यां पृथिव्यां रोहन्तीति तथोक्तानाम् ( उपमा तत्पु०) वृक्षाणाम् प्रवालस्य किसलयस्य पल्लव. शब्द-नाम ( कर्मधा० ) तस्य लब्धिः प्राप्तिः ( 10 तत्पु० ) जाता संभूता इति वयं जानीमहे मन्यामहे / वृक्षाणां नवकिसलयस्य पल्लव इति नाम दमयन्त्याः पदो लवस्य ग्रहणाजातमिति भावः // 99 // ब्याकरण-चारुतया चारु + तल् ( भावे ) + टाप / सौक्ष्म्यात् सूक्ष्म + ष्यञ् / भाजः / भज् + क्विप् ( कर्तरि ) प० / महोरहाणाम् मही+/रुह + कः ( कर्तरि ) / लधिः / लभ + क्तिन् ( भावे ) / जानौमहे 'अस्मदो द्वयोश्च' ( 1 / 2 / 59 ) से बहुव० / अनुवाद-सौन्दर्य में उत्तम होने से इस ( दमयन्ती ) के पैरों को देख ( सौन्दर्य में स्वयं ) काम होने के कारण पैरों का लवमात्र रखे वृक्षों के नक किसलय का नाम पल्लव ( पद्-लव ) पड़ा है, ऐसा हम समझते हैं // 99 //