________________ सप्तमः सर्गः 217 व्याकरण-क्षीणेन क्षि + क्त दीर्घ त को न. न को ण। सता अस् + शत, अ का लोप / भीम यास्कानुसार बिभ्यत्यस्मादिति भी + मक ( अपादाने ) / विजृम्भितम् वि + जृम्भ + क्तः ( भावे ) / अनुवाद-मध्य भाग में रहता हुआ भी कृश उदर जो बलियों, त्रिवलियों की ओर से आक्रमण नहीं पा रहा है, वह सभी अंगों में निर्दोष इस भीमपुत्री में अनंग-राज्य का विचित्र ही खेल है। जिस तरह कि ( दो राज्यों की सीमाओं के ) मध्य में पड़े हुए, ( राज्य, स्वामी, अमात्य आदि ) राज्याङ्गों से रहित दुर्बल राज्य पर भयानक भूमि में उक्त राज्याङ्गों में निर्दोष अर्थात् दृढ़ बने प्रबल राज्यों द्वारा आक्रमण न होने की बात विचित्र हुआ करती है // 81 // टिप्पणी-इस श्लोक में कवि भैमी के उदर का वर्णन कर रहा है। वैसे तो वह सर्वाङ्ग शुद्ध है, किसी भी अंग में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है, किन्तु उदर पर त्रिवलियाँ अभी सूक्ष्म हैं, नवयौवन के कारण पूरी तरह उभर नहीं पाई हैं, इसलिए उदर पर उनका आक्रमण-दबाव नहीं हो रहा है। अनंग राज्य की लीला जो ठहरी / इस सर्वाङ्ग सुन्दरी पर अनंग राज्य कितनी विचित्र बात हैं / सर्वाङ्ग और अनंग तो परस्पर विरोधी होते है। इसी लिए विद्याधर के अनुसार यहाँ विरोधाभास है जिसका परिहार अनंग का काम अर्थ लेकर हो जाता है / दूसरी विचित्र बात भी देखिए 'भीम-भुवि = भीम राजा की भूमि पर अनंग का राज्य ? दूसरे की भूमि पर दूसरे का राज्य नहीं हो सकता है / यहाँ भी विरोध है, जिसका परिहार भीम-भू का भैमी अर्थ करके किया जा सकता है। उदर और वलियों पर चेतनव्यवहारारोप होने से समासोक्ति पूर्ववत् चली आ रही है। शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। इस श्लोक में कवि ने श्लेष द्वारा एक दूसरे अर्थ की ओर संकेत कर रखा है। कितनी विचित्र बात है कि एक छोटा-सा निर्बल राज्य जिसके पास सेना, कोश, मन्त्रिमण्डल आदि कोई भी राज्याङ्ग नहीं है, पड़ोसी दो प्रवल राज्यों की सीमाओं के मध्य खतरे से भरे भूखण्ड में एक 'बफ्फर स्टेट' ( Buffer state ) के रूप में स्थित है, और उस पर सभी राज्याङ्गों से परिपुष्ट पड़ोसी प्रबल राज्य आक्रमण न करें। इस राजनैतिक अर्थ का प्रकृत के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, अतः इनमें उपमानोपमेय भाव सम्बन्ध स्थापित करके हम इसे शब्दशक्त्युद्भव उपमाध्वनि ही कहेंगे /