________________ 224 नैषधीयचरिते अन्वयः--अस्याः पृष्ठ''कायाम् ग्रन्थि वेशात् इयम् रजताक्षरा स्मरप्रशस्तिः खलु। टीका-अस्याः दमयन्त्याः पृष्ठस्य शरीरपश्चाद्-भागस्य स्थली स्थलम् (10 तत्पु० ) एव हाटकस्य सुवर्णस्य पट्टिका फलकम् तस्याम् (10 तत्पु० ) ('हिरण्यं हेम हाटकम्' इत्यमरः ) ग्रन्थिना ग्रन्थिकया बन्धेनेति यावत् निबद्धाः संयताः (तृ० तत्पु० ) ये केशाः कचाः ( कर्मधा० ) तेषु यत् मल्ली-कदम्बम् ( स० तत्पु० ) मल्लीनाम् मल्लिका पुष्पाणाम् कदम्बम् समूहः (10 तत्पु० ) तस्य प्रतिबिम्बानां प्रतिच्छायानाम् वेशात् छलात् (10 तत्पु०) इयम् एषा रजतस्य रौप्यस्य अक्षराणि वर्णाः (10 तत्पु० ) यस्यां तपाभूता ( ब० वी० ) स्मरस्य कामस्य प्रशस्तिः कामयशःप्रशस्तिपत्रमित्यर्थः खलु / दमयन्त्या पृष्ठरूपस्वर्णफलके पतितानि श्वेतमल्लिकापुष्पाणां प्रतिबिम्बानि रजताक्षरलिखितकामप्रशस्तिपत्रमिव प्रतीयन्ते स्मेति भावः // 88 // व्याकरण-प्रन्यि अध्यते इति / ग्रन्थ + इन् / पट्टिका पट्टी + कन् + टाप, ह्रस्त / प्रशस्तिः प्र + /शंस् + क्तिन् ( भावे ) / अनुवाद-इस ( दमयन्ती ) के पृष्ठस्थलरूपी सुवर्ण-फलकपर गाँठ द्वारा बंधे केशों में चमेली के पुष्प-समूह के प्रतिबिम्बों के वेश में रजताक्षरों वाली यह कामदेव को प्रशस्ति-जैसी लग रही है // 88 // टिप्पणी-इस श्लोक में कवि दमयन्ती की पीठ का वर्णन कर रहा है। उसकी देहकान्ति स्वर्ण-जैसी पीले रंग की है। चौड़ी पीठ सोने का फट्टा-सा लग रहा है, जिसके ऊपर केशों के बीच से श्वेत वर्ण के चमेली के फूलों की छटा प्रतिबिम्बित हो रही है। इस पर कवि कल्पना कर रहा है कि पीठ सोने का फट्टा है, और पुष्प प्रतिबिम्ब रजताक्षर हैं। स्वर्णफलक पर रजताक्षरों में लिखा कामदेव का प्रशस्तिपत्र बन गया / कल्पना में उत्प्रेक्षा है जिसके मूल में पृष्ठस्थली हाटक-पट्टित्वारोप से होने वाला रूपक और प्रतिबिम्ब वेश में अपहनुति काम कर रही है / 'हाटक-पट्टिका' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / चक्रेण विश्वं युधि मत्स्यकेतुः पितुर्जितं वीक्ष्य सुदर्शनेन / . जगज्जिगोषत्यमुना नितम्बमयेन किं दुर्लभदर्शनेन // 89 // अन्वयः-मत्स्यकेतुः पितुः सुदर्शनेन चक्रेण युधि विश्वम् जितम् वीक्ष्य दुर्लभ-दर्शनेन अमुना नितम्बमयेन चक्रेण जगत् जिगीषति किम् ?