________________ सप्तमः सर्गः 219 अन्वयः-सुभगा इयम् अपि कदाचित् गौरी इव पत्या ( सह ) अर्धतनूसमस्याम् कर्ता-इति इव विधाता अस्याः मध्ये रोमावली मेचक-सूत्रम् विदघे / टीका-सुभगा सौभाग्यवती भतृ वल्लभेति यावत् इयम् एषा दमयन्ती अपि कदाचित् कस्मिश्चित् काले विवाहानन्तरसमये इत्यर्थः गौरी पार्वती इव पत्या भर्ना सह अर्धा तनूः शरीरम् इति ( कर्मधा० ) अथवा तन्वाः अर्धम् इति अर्धतनूः (10 तत्पु० ) तस्या: समस्याम् अपूर्णस्य पूरणम् संयोजनमिति यावत् कर्ता करिष्यति इति हेतोः इव अस्याः दमयन्त्याः मध्ये कटिभागे रोम्णाम् लोम्नाम् आवली पङ्क्तिः (10 तत्पु० ) एव मेचकम् श्यामवर्णम् सूत्रम् दाम ( उभयत्र कर्मधा० ) विदधे रचितवान् / विवाहानन्तरम् दमयन्ती अर्धनारीश्वरवत् स्वापूर्णदेहं स्वभर्तुः देहेन संयोज्य पूर्णदेहताम् अवाप्स्यतीति भावः / / 83 // व्याकरण-सुभगा सु= शोभनं भगः भाग्यं यस्याः तथाभूता (प्रादि ब० वी० ) समस्या समसनम् इति सम + अस् + क्यप् + टाप् / कर्ता/कृ + लुट् / अनुवाद---भाग्यशालिनी यह ( दमयन्ती ) भी पार्वती की तरह कभी पति के साथ अर्धाङ्ग-पूर्ति कर लेगी-यह सोचकर मानो ब्रह्मा ने इसकी कमर पर रोमावलीके रूप में काला सूत्र बना दिया है / / 83 // टिप्पणी-यहां से लेकर पाँच श्लोकों तक कवि अब दमयन्ती की रोमावली का वर्णन कर रहा / वैसे नारी-पुरुष का अर्धाङ्ग होती है, वह भी अङ्ग वरतर (Better ha'f) / इसीलिए वह अर्धाङ्गिनी कही जाती है। पुरुष भी नारी के बिना अधूरा ही है ! दोनों मिलकर एक पूर्ण व्यक्ति बनता है। इसका उदाहरण अर्धनारीश्वर महादेव है। दमयन्ती भी विवाहोपरान्त भर्ता के साथ जुड़कर एक बन जायेगी। ब्रह्मा ने कमर की रोमावली इसीलिए बनाई कि पति के साथ बंधने-एकाकार होने में वह डोरी का काम कर सके। यह कवि की कल्पना है, अतः उत्प्रेक्षा है. जिसके मूल में रोमावली पर सूत्रत्वारोप से बनने वाला रूपकालंकार है / विद्याधर छेकानुप्रास भी कह रहे हैं, लेकिन हमें वह यहाँ कहीं नहीं दीख रहा है / सम्भवतः उन्हें 'विदधे-विधाता में उसका भ्रम हो गया हो / वास्तव में सर्वत्र वृत्यनुप्रास ही है / रोमावलीरज्जुमरोजकुम्भी गम्भीरमासाद्य च नाभिकूपम् / मदृष्टितृष्णा विरमेद्यदि स्यान्नैषां वतैषां सिचयेन गुप्तिः / / 84 //