________________ 206 नैषधीयचरिते टिप्पणी' यह कवि की कल्पना है कि ब्रह्मा मानो दमयन्ती को यह कह रहे हैं कि "तुम्हारे इन सुन्दर हाथों को बनाने से पहले मैने स्थूल रेखा के रूप में कमल बनाये हैं जिससे कि मैं पूरी कलानैपुणी प्राप्त कर सकूँ जैसे कि सभी कलाकार किया करते हैं। जब मुझ में पूर्ण नैपुणी आ गई तब जाकर कहीं मैंने तुम्हारे हाथ बनाये, साथ ही उनमें कमल की रेखा भी खींच दी यह बताने के लिए कि पहले मैंने अभ्यासार्थ कमल बनाये, तब हाथ बनाये"। सामुद्रिक शास्त्रानुसार हाथ में कमल की रेखायें. शुभ सूचक मानी जाती हैं। कल्पना में उत्प्रेक्षा है, जिससे 'दमयन्ती के हाथ कमलों से कहीं अधिक सुन्दर है' यह व्यतिरेकालंकार ध्वनि निकल रही है / 'हरिणेक्षणायाम्' में उपमा है / शब्दालंकारों में 'हस्तलेखः' 'हस्तलेखी' में छेक, 'तया' 'तयो' में यमक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। किं नर्मदाया मम सेयमस्यां दृश्याभितो बाहुलतामृणाली। कुचौ किमुत्तस्थतुरन्तरीपे स्मरोष्मशुष्यत्तरबाल्यवारः // 73 // अन्वयः-अभितः दृश्या मम नर्मदायाः अस्याः सा इयम् बाहुलता मृणाली किम् ? स्मरो' 'वारः अस्याः कुचौ अन्तरीपे उत्तस्थतुः किम् ? टोका-अभितः द्वयोः पार्श्वयोः दृश्या दर्शनीया अथ च रमणीया मम मे नर्म आनन्दं ददातीति तथोक्तायाः ( उपपद तत्पु० ) अथ च नर्मदायाः रेवानद्याः ( 'रेवा तु नर्मदा' इत्यमरः ) अस्याः दमयन्त्याः सा प्रसिद्धा इयम् पुरो दृश्यमाना बाहुः भुजः लता इव ( उपमित तत्पु०) एव मृणाली विसवल्ली, किम् ? अत्र मणाली द्विवचन-परका अर्थात् मणाल्यौ ज्ञेया भुजयोः द्वित्वात् / स्मरस्य कामस्य ऊष्मणा तापेन (ष० तत्पु० ) शुष्यत्तरम् अतिशयेन शोष प्राप्नुवत् (त० तत्पु० ) बाल्यम् बाल्यावस्था एव वाः वारि ( कर्मधा० ) ( 'आपः स्त्री भूम्नि वारि' इत्यमरः) यस्याः तथाभूताया अस्याः दमयन्तीरूपनर्मदानद्याः कुचौ स्तनौ अन्तरीपे द्वद्वोपे उत्तस्थतः उपरि उत्थिती किम् ? वाल्यावस्थारूपजले युवावस्थायां कामोष्मद्वारा शोषिते सति दमयन्तीरूपनर्मदायां कुचरूपं द्वीपद्वयं समुत्थितमिव प्रतीयते इति भावः // 73 // व्याकरण-दृश्य द्रष्टु योग्यमिति दृश् + क्यप् / ऊष्मन् /ऊष् + मनिन् (भावे ) / बाल्यम् बालायाः भावः इति बाल + ष्यन् / अन्तरीपम् अपाम्