________________ सप्तमः सर्गः 130 चित्रित कर रहा है / इसे बनाने में विधाता को बड़ा प्रयत्न करना पड़ा। पहले कितने ही 'हस्तलेख' हस्तकौशल प्राप्त करने के लिए स्थूल खाकियां-रफ स्केच ( Rough Sketch )-खींचने पड़े, जो उर्वशी आदि सुन्दरियों के रूप में थे। जब पूरा हस्तकौशल प्राप्त हो गया, तब जाकर कहीं उसके हाथों दमयन्ती की रचना हो सकी है। प्रश्न उठता है कि विधाता जब सौन्दर्य की चूड़ान्तरचना दमयन्ती के रूप में कर बैठा है तो वह अब फिर क्यों स्त्रियों की रचना कर रहा है और भविष्य में भी क्यों करता जायगा ? इसका उत्तर कवि के पास यह है कि वर्तमान और भविष्यत्कालीन अन्य स्त्रियों की रचना के पीछे ब्रह्मा का यह प्रयोजन है कि वह दमयन्ती को यह यश भी तो दे दे कि वह भूत-भविष्यत्-वर्तमान-तीनों कालों की स्त्रियों को पराजित किये हुए हैं / यहाँ 'पुराकृति स्त्रैण' पर विधाता के 'हस्तलेख' की कल्पना पर उत्प्रेक्षा है, जो खलुशब्द-बाच्य है / 'विवातुं' 'विधातुः' 'भव' 'भावि' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / भव्यानि हानीरगरेतदङ्गाद्यथा यथानति तथा तथा तैः / अस्याधिकस्योपमयोपमाता दाता प्रतिष्ठां खलु तेभ्य एव // 16 // अन्वयः-भव्यानि ( वस्तूनि ) एतदङ्गात् यथा यथा हानीः अगुः, तथा तथा तैः अनति / खलु अधिकस्य अस्य उपमया उपमाता तेभ्यः प्रतिष्ठाम् एव दाता। टीका-यानि रमणीयानि चन्द्रादिवस्तूनीति शेषः एतस्याः दमयन्त्याः अङ्गात् ( जातावेकवचनम् ) अवयवेभ्य इत्यर्थः तथा यथा येन येन प्रकारेण हानी: अपकर्षान् अगुः प्रापुः तथा तथा तेन तेन प्रकारेण तैः चन्द्रादिवस्तुभिः अनति नृत्तम् / खलु यतः अधिकस्य गुणः उत्कृष्टस्य अस्य दययन्त्या अङ्गस्य उपमया तुलनया उपमाता उपमाप्रयोक्ता कविरित्यर्थः तेभ्यः चन्द्रादिभ्यः प्रतिष्ठाम् गौरवम् एव दाता दास्यति / दमयन्त्मा अङ्गापेक्षया गुणैरपकृष्टत्वेऽपि उपमान्तरस्याभावात् चन्द्रादयः तन्मुख सदृशा इति औपम्यं प्रयुञ्जानस्य कवेः हस्ते तेषां गौरवमेव सम्पत्स्यते इति भावः // 16 // व्याकरण-भव्यानि भवतीति /भू + यत् कर्तरि ( 'भव्य-गेय.' 3 / 4 / 68) से ( निपातित ) / हानिः /हा + नि ( 'ग्लाम्ला-जहातिभ्यो निर्वक्तव्यः'