________________ सप्तमः सगः 135 अमीषाम् एतेषां दमयन्त्याः अङ्गानामित्यर्थः वस्तु चन्द्रादि-पदार्थः उपमा उपमानम् अपमान: अवमानना अस्तीतिशेषः / दमयन्त्या अङ्गानि चन्द्रादितुल्यानि सन्तीति तेषामपमानः / वस्तुतः चन्द्रादीनि अस्या मुखादीनां सदृशानीत्येव वाच्यम् न पुनः अस्याः मुखादीनि चन्द्रादिसदृशानीति भावः // 14 // व्याकरण-साम्ये समस्य भाव इति सम + व्यञ् / “उच्चकृषे उत् + कृष् + लिट ( भाववाच्य ) / तुलना तुल + णिच् + युच्, यु को अन + टाप् / उपमा उपमीयतेऽनयेति उप + /मा + अङ् (करणे) + टाप् ( उपमानमित्यर्थः)। अनुवाद-क्योंकि ( दमयन्ती के ) अङ्ग ( यत्किञ्चित् गुण में ) साम्य रखते हुए भी अन्य गुण के कारण उन सभी समानों-चन्द्रादि पदार्थों-की अपेक्षा उत्कृष्ट हुए पड़े हैं, इसलिए इस ( दमयन्ती के अंगों से उनकी तुलना भले हो भी जाय, लेकिन चन्द्रादि पदार्थों को इनका उपमान वनाना ( इनका ) अपमान है / / 14 ! / टिप्पणी-यह साहित्य-जगत् का नियम अथवा कवि-ख्याति है कि उपमान को हमेशा गुण में उपमेय की अपेक्षा अधिक ही होना चाहिए / मुख की चन्द्र से, आँख की इन्दीवर से, अधर की बिम्ब से उपमा में यही बात दीखनी चाहिए, लेकिन कवि दमयन्ती के इन अंगों के आगे चन्द्रादि को हीन बताकर उपमान कोटि से हटा रहा है। चन्द्र में मुख का-सा वतुंलाकार और आह्लादजनकता ठीक है, किन्तु सभी गुणों में वह मुख की बराबरी नहीं कर सकता। चन्द्र क्षयशील है, सकलंक है, लेकिन मुख में यह बात नहीं। इन्दीवर भले ही आकार और नीलिमा में आँख-जैसा हो, किन्तु आँख में कटाक्षपातादि गुण उससे अधिक हैं। इसी तरह अन्य उपमानों में भी कमी का और अंगों में गुणाधिक्य का अन्दाज लगा लीजिए। ऐसी स्थिति में गुणाधिक्य के कारण दमयन्ती के अंगों को ही चन्द्रादि का उपमान बनना चाहिए, उपमेय नहीं। उनकी चन्द्रादि से तुलना करना अन्याय है, उनका घोर अपमान है। यहाँ उपमानों को उपमेयों की अपेक्षा गिराकर दिखाया गया है, अतः प्रतीपालंकार है। शब्दालंकारों में 'दृशा' 'दशे' 'मुप' 'मार' में छेक है, जिसके साथ ‘पमा' 'पम' से बन रहे यमक का एकवाचकानुप्रवेश संकर है, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / वस्तु''मान:-विश्वेश्वर के अनुसार 'अमीषाम् अङ्गानाम् उपमा समीकरणम् वस्तु यथार्थस्तु अपमानो लघुकरणम् अर्थ हैं / श्लोक में शब्दों के अध्याहार के कारण अर्थगत क्लिष्टता दोष