________________ नैषधीयचरिते टीका-केश: केशकलापः एव अन्धकारः तस्मात् ( कर्मधा० ) अथ अनन्तरम् अधस्तादित्यर्थः दृश्यः दर्शनीयः भालस्थलम् ललाट-पटलम् एव अधः चन्द्रः ( सर्वत्र कर्मधा० ) यस्याः, तथाभूना ( ब० बी० ) इयम् दमयन्ती दृश्य: दृष्टिगोचरः अर्धचन्द्रः यस्यां तथाभूता अस्फुटम् स्पष्टम् यथा स्यात्तथा अष्टमी कृष्णपक्षाष्टमी अस्तीति शेषः / एनाम् कृष्णाष्टमीरूपां दमयन्तीम् आसाद्य प्राप्य जगत: संसारस्य जयाय विजयार्थ (10 तत्पु० ) मनोभुवा कामेन सिद्धिः साधनशक्तिरित्यर्थः यत् असाधि साधिता ( तत् ) साधु युक्तमेव / कृष्णपक्षीयाष्टमीसदृशभालेयं दमयन्ती कामदेवहस्ते . जगद्वशीकरणशक्तिरस्तीति भावः // 23 // व्याकरण-दृश्य द्रष्टु योग्य इति /दृश् + यत् / एनाम् अन्वादेश में एताम् का रूप है / मनोभुवा मनः भूः उत्पत्तिस्थानं यस्य (ब० वी० ) अथवा मनसो भवतीति मनस् + भू./क्विप् ( उपपद तत्पु० ) / सिद्धिः / सिध् + क्तिन् ( भावे ) असाधि /सिध् + णिच् + लुङ् ( कर्मवाच्य ) / - अनुवाद केशरूपी अन्धकार के निचले भाग में दृश्य ( सुन्दर ) ललाटपटलरूपी अर्धचन्द्रवाली यह ( दमयन्ती) स्पष्टतः ( अन्धकार के बाद दृश्य - दिखाई पड़ने वाले अर्धचन्द्र वाली कृष्ण पक्ष की) अष्टमी है। इस ( दमयन्ती, अष्टमी ) को प्राप्त करके विश्व-विजय हेतु कामदेव ने सिद्धि जो साधी, बह ठीक ही है / / 23 / / टिप्पणी-पिछले तीन श्लोकों में दमयन्ती के केश-कलाप का चित्रण करके इस श्लोक में कवि उसके ललाट का चित्र खींच रहा है। केशों को अन्धकार का रूप देकर उनके नीचे ललाट को वह कृष्णपक्ष के अर्धचन्द्र का रूप दे रहा है / कृष्णाष्टमी में अन्धकार के बाद चन्द्रमा दो प्रहर बीतने पर देखने को मिलता है / ललाट भी केशों के बाद आता है। भाव यह कि दमयन्ती के सुन्दर ललाट द्वारा कामदेव विश्वविजय की सिद्धि प्राप्त किये हुए हैं। कोई साधक भी विश्वविजय हेतु कृष्णपक्ष की अष्टमी को सिद्धि प्राप्त किया करता है। ज्योतिष शास्त्र में कृष्णाष्टमी को जयसिद्धि देने वाली कहा गया है-'जयदा विजिगीषूणां यात्रायामसिताष्टमी' / मल्लिनाथ 'स्फुटम्' को उत्प्रेक्षा-वाचक मानकर यहाँ उत्प्रेक्षा मान रहे हैं। हम उसे स्पष्टार्थ में क्रियाविशेषण मानकर