________________ षष्ठः सर्गः 117 अन्वयः-निषधजनपदेन्द्रः दिगधिपकृपया आप्तात् ईदृशः संविधानात् स्वेन श्रवण-पुट-युगेन साधु अपनीतम् इत्थम् बाला-रागवागुत्थम् मधु आनन्द-सान्द्रम् पातुम् अलभत / ____टीका-निषधानाम् एतदाख्यस्य जनपदस्य देशस्य इन्द्रः प्रभुः नलः (10 तत्पु० ) दिशः पूर्वदिशायाः अधिपः स्वामी इन्द्र इत्यर्थः तस्य कृपया अनुग्रहेण अदृश्यीभवनशक्तिदानरूपेण आप्तात् प्राप्तात् ईदृशः एतादृशात् दूत्यात्मकादित्यर्थः संविधानात् उपायात् स्वेन निजेन श्रवणयोः कर्णयोः पुटयोः शष्कुल्योः पात्रयोरिति यावत् युगेन द्वयेन ( उभयत्र 10 तत्पु० ) साधु सम्यक् यथा स्यात्तथा उपनीतम् आनीतम् इत्थम् उक्त-प्रकारेण वालायाः दमयन्त्याः रागस्य मयि अनुरागस्य या वाक् वचनानि ( उभयत्र ष० तत्पु० ) तस्मात् उत्तिष्ठति उपजायते इति तथोक्तम् ( उपपद तत्पु० ) मधु क्षौद्रम् आनन्देन सान्द्र घनं यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात्तथा पातुम् पानविषयीकर्तुम् अलभत प्राप्तवान्, अदृष्टः सन् आदरेण स्वविषयकानुरागबोधकानि दमयन्ती-मधुरवचनानि कर्णाभ्यां श्रुतवानित्यर्थः // 112 // व्याकरण-अधिपः अधिकं पातीति अधि + /पा + कः / संविधानात् संविधीयतेऽनेनेति सम् + वि + /धा + ल्युट ( करणे ) / श्रवणम् श्रयतेऽनेनेति + ल्युट ( करणे) / इत्थम् इसके लिए पिछला श्लोक देखिए / ०वागुत्थम् उत् +/स्था + क / आनन्दः आ + नन्द + घन (भावे ) / पातुम् में लभ् के योग में तुमुन् है। ___ अनुवाद-निषध-नरेश ( नल ) को (पूर्व ) दिशा के स्वामी ( इन्द्र ) की कृपा द्वारा प्राप्त ऐसे उपाय से अच्छी तरह लाया हुआ, इस तरह बाला ( दमयन्ती ) के प्रेम-वचनों से उत्पन्न मधु बड़े आनन्द के साथ दो कर्ण-पुटों ( पात्रों ) से पीने को मिली // 112 // टिप्पणी-नल के हर्ष का पाराबार नहीं रहा जब उन्होंने दमयन्ती के वचनामृत का पान किया जिसमें उसका उन्हीं के प्रति असीम प्रेम छलक रहा था—ऐसा प्रेम जो यम, अग्नि, वरुण देवताओं को तो क्या, इन्द्र तक को भी ठुकरा गया था। नल इन्द्र के बड़े कृतज्ञ हैं। यदि वह उन्हें दूत न बनाता, अदृश्य होने की शक्ति न देता तो उन्हें भला दमयन्ती के पास आकर अपने आँखों उसका अतुल लावण्य देखने का, उसका अपने प्रति निश्छल प्रेम जानने का तथा