________________ 132 नैषधीयचरिते अन्वयः यत् प्रत्यङ्ग भूमा लावण्यसीमा इमाम् उपास्ते, ( तत् ) स काम नवाम् वपुः"विद्याम् अस्याम् द्योतयामास किम् ? टोका-यत् यस्मात् अङ्गम् अङ्गम् प्रति इति प्रत्यङ्गम प्रत्यवयवम् ( अब्ययी० ) प्रत्येकाने इति यावत् संग: ( लावण्यस्य ) सम्बन्धः तेन स्फुटलब्धः (तृ० तत्पृ०) स्फुटं स्पष्टं यथा स्यात् तथा लब्धः प्राप्तः (सुप्सुपेति समास:) भूमा वैपुल्यं विस्तार इति यावत् ( कर्मधा० ) येन तथाभूता ( ब० बी० ) लावण्यस्य सौन्दर्यस्य सीमा अवधिः पराकाष्ठेति यावत् इमाम् दमयन्तीम् उपास्ते भजते यतः दमयन्त्याम् अङ्गेनाङ्गेन समृद्धि नीता लावण्यस्य पराकाष्ठा विद्यते इत्यर्थः तस्मात् स प्रसिद्धः कामः मदनः नवाम् अपूर्वाम् वपुः शरीररूपः व्यूहः समूहः ( कर्मधा० ) वपृव्यूहः, वपुर्हि तत्तद्धस्तपादादीनां संघातरूपम्, भवति तस्य विधानस्य निर्माणस्य विद्याम् शास्त्रम् कलामिति यावत् अस्याम् दमयन्त्याम् नत्वन्यस्याम् द्योतयामास प्रकाशयामास किम् ? बाल्यावस्थानन्तरम् यौवने उदयति कामेन प्रत्यङ्गं विलक्षण-सौन्दर्यमाधाय तस्याः शरीर-संघाते अपूर्व-परिवर्तनकौशलम् प्रदर्शितमिति भावः // 12 // __व्याकरण-भूमा बहोर्भाव इति वहु+ इमनिच, इ का लोप और भू आदेश नान्त होने से ङीप् प्राप्त था किन्तु 'मन.' ( 4 / 1 / 11 ) से निषेध हो गया। सीमा यास्काचार्यानुसार 'विसीव्यति' देशौ इति /सीव + मनिन् ( पृषोदरादित्वात् साधुः ) / यहाँ भी उपरोक्त की तरह ङीप-निषेध है। व्यूहः वि + V ऊह + घम् / द्योतयामास/द्युत् + णिच्+लिट् / अनुवाद- क्योंकि अंग-अंग से सम्बन्ध होने के कारण स्पष्टतः अतिशय में पहुँचे सौन्दर्य की पराकाष्ठा इस ( दमयन्ती ) में विद्यमान है, इसलिए काम ने इसके शरीर-संघात की रचना में अपूर्व कला-कौशल दिखाया है क्या ? // 12 // टिप्पणी-दमयन्ती का शरीर वाल्यावस्था चलौ जाने पर युवावस्था में पदार्पण करते ही आंगिक संरचना में विलकुल नयापन अपना बैठा / कामदेव स्वयं दौन्दर्य की पराकाष्ठा है। अतः ऐसा लगता है कि उसने ही दमयन्ती के अंग-प्रत्यंग में लोकातीत सौन्दर्य भरकर उसकी युवा-कालीन शारीरिक रचना के गठन में अपनी कला का कमाल कर दिखाया है। नारायण के अनुसार भैमी के अंग-अंग में काम के विद्यमान होने से उसने उसमें अपना बहु-रूपत्व प्रकट किया है। जिस तरह उसका मुख देखने से काम का प्रादुर्भाव होता है, उसी तरह उसकी