________________ षष्ठः सर्गः अन्वयः–स मध्येसभम् तदालिवृन्दैः अभिनन्द्यमानाम् वासवसम्भलीयाम् विज्ञप्तिम् अन्तः सभयः कुशाशः (च) सन् भृशम् संभालयामास / / टीका–स नलः सभायाः सभामण्डपस्य मध्ये इति मध्येसभम् ( अब्ययीभाव ) तस्याः दमयन्त्याः आलीनाम् सखीनाम् वृन्दै : गणेः ( उभयत्र प० तत्पु०) अभिनन्धमानाम् क्रियमाणाभिनन्दनाम् प्रोत्साह्यमानामिति यावत् वासवस्य इन्द्रस्य सम्भली कुट्टनी ('कुट्टनी सम्भली समे' इत्यमरः) दूतीत्यर्थः (10 तत्पु०) तस्या इयमिति सम्भलीया ताम् विज्ञप्तिम् विज्ञापनाम् अन्तः मनसि समय। भयेन सहितः ( ब० वी० ) कृशा क्षीणा आशा यस्य तथा भूतः (ब० वी० ) सन् संभालयामास सावधानं शुश्राब / दूतीकृतम् इन्द्रप्रस्तावं सखीभिरभिनन्द्यमानमवलोक्य नूनम् इन्द्रमेव सा वरिष्यतीति हृदये नलः पुनः दमयन्त्यां शिथिलाशो बभूवेति भावः ! / 76 / / व्याकरण-मध्येसभम् ‘पारे मध्ये षष्ठ्या वा' (2 / 1 / 18) से वैकल्पिक अब्ययो० / अभिनन्धमानाम् अभि + /नन्द + शानच् ( कर्मवाच्य ) सम्भलीयाम् सम्मली + छ, छ को ईय + टाप / विज्ञप्तिम् वि + /ज्ञा + णिच् + क्तिन् / यहाँ ज्ञाधातु के णिजन्त होने के कारण क्तिन् को बाधकर ( ण्यासश्रन्थो युच् ( 3 / 3 / 107 ) युच प्रत्यय होने से बिज्ञापना ही रूप बनता है विज्ञप्ति प्रयोग व्याकरण विरुद्ध है किन्तु लोग इसको प्रयोग में ला ही रहे हैं / संभालयामास सम् + /भल + णिच् + लिट् / 'अनुवाद-वह ( नल) सभामण्डप में उस ( दमयन्ती) के सखीगणों द्वारा अभिनन्दित की जाती हुई इन्द्र की दूती की बिज्ञप्ति मन में भीत ( एबं) आशाहीन हो ध्यानपूर्वक सुन रहे थे // 76 // टिप्पणो-नल समझ रहे थे कि इन्द्रदूती का प्रस्ताव जिसे दमयन्ती की सखियों का भी समर्थन मिल रहा था। वह स्वीकार कर लेगी, अतः मन में डरे उनकी आशा पर फिर पानी फिरने लगा कि वह अब मेरे हाथ से गई समझो इन्द्र तथा स्वर्ग का ऐश्वर्य भला कौन ठुकरायेगो ? 'सम्भलीया' 'संभालया' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। लिपिन दैवी सुपठा भुवीति तुभ्यं मयि प्रेषितवाचिकस्य / इन्द्रस्य दूत्यां रचय प्रसादं विज्ञापयन्त्यामवधानदानः // 77 //