________________ षष्ठः सर्गः 79 अन्वयः- ( हे दमयन्ति ) बासवः सलीलम् आलिङ्गनया उपपीडम् त्वाम् अनामयम् पृच्छति / शेषः त्वदाश्लेषकथापनिद्र: तद्रोमभिः भवत्यै संदिदिशे / टोवा-(हे दमयन्ति ) वासव: इन्द्रः लीलया विलासेन सहितम् यथा स्यात् तथा ( ब० वी० ) आलिङ्गनया आलिङ्गनेन उपपीडम् उपपीड्य त्वाम् अनामयम आरोग्यम् पृच्छति / शेषः अवशिष्टम् कथनीयं तब आश्लेष: आलिङ्गनम् तस्य कथया कथनेन प्रसङ्ग नेति यावत् ( उभयत्र ष० तत्पु० ) अपनिद्रैः ( तृ० तत्पु० ) अपगता निद्रा येषां तथाभूतैः (ब० वी० ) हृषितरित्यर्थः भवत्यै तुभ्यम् संदिदिशे संदिष्टः। आलिङ्गनप्रसङ्गेन जातै रोमाञ्चैः स्वयं कथितमेव स त्वयि अनुरज्यते इति भावः // 78 // व्याकरण-वासवः वसूनि = धनानि सन्त्यस्येति वसु + अण् / आलिङ्गनया आ + /लिग् + णिच् + युच + टाप् / उपपीडम् उप+पीड + णमुल ( सप्तम्यां चोपपीडरुधकर्षः' 3 / 4 / 49 सप्तमी और तृतीया उपपद में) विकल्प से समासाभाव ( तृतीया० 2 / 2 / 21 ) / आश्लेषः-आ + /श्लिष् + घञ् / संविदिशे सम् +दिश + लिट् ( कर्मवाच्य ) / अनुवाद- इन्द्रदेव बिलास के साथ कसकर आलिङ्गन द्वारा तुम्हें क्षेमकुशल पूछते हैं। शेष संदेश तुम्हारे आलिङ्गन की बात से उठे हुए रोमाञ्च तुम्हें दे (ही) बैठे हैं / / 78 // टिमणी-आलिङ्गन की बात कहते ही इन्द्र को रोमाञ्च हो उठा, जिसके साथ अन्य सात्विक भाव भी हो गये। स्तम्भ से गला रुंध गया। तुम प्रेम करने की बात मुह से निकल न सकी। इसलिए रोमाञ्च ही संदेश कह गया कि वे तुम पर आसक्त है, इसलिए उन्हें अनुगृहीत कीजिये / रोमाञ्च सात्विक भाव है, संचारी नहीं, अतः भावोदयालंकार नहीं बन सकता / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। अनामयम्-यद्यपि आजकल 'कुशल' पूछने की प्रथा सभी वणों में एक-सी बनी हुई है, किन्तु धर्मशास्त्र में इसकी ब्यबस्था है-ब्राह्मण लोग 'कुशल' क्षत्रिय 'अनामय' वैश्य 'क्षेम' और शूद्र ‘आरोग्य' पूछा करते थे इसके लिए देखिए मनु--'ब्राह्मणं कुसलं पृच्छेत् क्षत्रं पृच्छेदनामयम् / वैश्यं क्षेमं समागम्य शूद्रमारोग्यमेव च / वास्तव में यह शब्दों का ही हेरफेर है, अर्थ सबका एक ही निकलता है। प्रकृत में दमयन्ती के क्षत्रिय-कन्या होने के कारण इन्द्र का उसे 'अनामय' पूछना धर्मशास्त्रानुसार ही है /