________________ नैषधीयचरिते टोका-यत्र सभायाम् कलिः कलहः प्रियो यस्य तथाभूतस्य (ब० बी० ) नारदस्यत्ययः प्रियः इष्टश्चासौ शिष्यवर्गः ( कर्मधा० ) शिष्याणां वर्गः समूहः (ष० तसु०) गन्धर्वाणाम् किन्नराणां वध्वः स्त्रियः ( 10 तत्पु० ) स्वरः कण्ठध्वनिः एव मधु क्षौद्रम् ( कर्मधा० ) तेन अरीणम् अरिक्तम् पूर्णमित्यर्थः तत्कण्ठनालम् ( कमंधा० ) तस्या दमयन्त्याः कण्ठस्य गलस्य नालम् दण्डः ( उभयत्र ष० तत्पु० ) तेन एकधुरीणाः एकधुर्वहाः तुल्या इत्यर्थः (तृ० तत्पु०) वीणा: विपञ्च्यः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतः (ब० वी० ) सन् एत्य आगत्य भेमोम् दमयन्तीम् उपावीणयत् वीणया उपागायत् / दमयन्त्याः कण्ठस्वरेण स्ववीणास्वरं संमेल्य गायन्ति स्मेति भावः // 65 // व्याकरण-कलिप्रियस्य (ब० वी० ) में प्रिय शब्द का 'वा प्रियस्य' से परनिपात / वधः उह्यते पितृगृहात् पतिगृहमिति /वह + ऊधुक् / एत्य आ+ Vइ + ल्यप् तुगागम / अरीणम् न रीणम् रीङक्त ( कर्तरि ) त को न, न को ण / एकधुरोण एकधुराम् वहतीति एकधुरा + ख, ख को इन, न को ण [ 'एकधुराल्लुक च' 4 / 4 / 79] / उपावीणयत् -उप + /वीण् + लङ ( 'सत्यापपाश० 3 / 1 / 25) अनुवाद-जहाँ नारद की प्रिय शिष्या गन्धर्व स्त्रियाँ-जिनकी वीणायें ( माधुर्य में ) उस ( दमयन्ती) के स्वर रूपी मधुसे परिपूर्ण गल-दण्ड के समान थीं-आ करके वीणाओं द्वारा दमयन्ती का स्तुति-गान करती थीं / 65 / / टिप्पणी--पहले तो गन्धर्व स्त्रियाँ स्वभावतः संगीत कला में निपुण हुआ करती हैं, तिस पर वीणा सम्राट नारद ने उन्हें शिक्षा दे रखी है। वे तक भी वीणावादन नैपुण्य का अभ्यास करने हेतु जब दमयन्ती के पास आया जाया करती थी, तो इससे अनुमान लगा लीजिए कि उसकी कण्ठ माधुरी कितनी अधिक होगी। गल के साथ नाल शब्द जोड़ने से कवि यह ध्वनित करना चाह रहा है कि जिस तरह नाल के ऊपर कमल हुआ करता है, वैसे ही गल-दण्ड के ऊपर दमयन्ती का मुख कमल था। ‘एकधुरीण' शब्द सादृश्य-वाचक होता है, अतः उपमा है। स्वर पर मधुत्वारोप होने से रूपक है। 'वीण', 'वीणः' 'प्रिय' 'प्रिय' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। 'नावा स्मरः किं हरभीतिगुप्ते पयोधरे खेलति कुम्भ एव / इत्यर्धचन्द्राभनखाङ्कचुम्बिकुचा सखी यत्र सखीभिरूचे / / 66 //